उत्तर प्रदेशगोरखपुर

सात समंदर पार भी परंपराओं को जीवंत कर बिखेर रहीं छठ पूजा की अद्भुत छटा-

सुनील गहलोत (हर्षोदय टाइम्स)

गोरखपुर : देश में रहें या विदेश में, छठ के मौके पर घर लौटना कौन नहीं चाहता। कभी बच्चे की परीक्षा, तो कभी काम से छुट्टी नहीं. ऐसे ही कुछ लोग हैं, जिन्हें छठ पर घर नहीं आने का मलाल रहता है. परिवार के लोग भी इस बात से उदास रहते हैं कि बेटा या बेटी छठ में नहीं आ पायेंगे।लोंगो का कहना है कि वे बाहर रहने गये हैं। लेकिन अपनी परंपरा और सूर्योपासना के पर्व छठ को कैसे भूल सकते हैं।सूर्य की महिमा पूरी दुनिया जान सके, यही उनका मकसद है। वह झील,बीच, तालाब या घरों में हौद बनाकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं और अपनी परंपराओं को जीवंत कर विदेशों में छठ पूजा की अद्भुत क्षटा बिखेर रही हैं।

गोरखपुर के दाक्षिणांचल में उप नगर गोला बाजार की रीना पत्नी संजीव व देवकली की थाईलैण्ड में रहने वाली अंकिता देवी पत्नी रवीन्द्र कसौधन कहती हैं कि जब मैं यहां आई तो छठ मईया को पहला अर्घ्य देते वक्त घर नहीं जाने के गम में आंखों में आंसू आ गये थे।इसके बाद सात वर्षों से छठी मइया की कृपा से यहीं छठ कर रही हूं। क्षेत्र के पोखरी गांव की थाईलैण्ड में रह रही सरिता चंद पत्नी बबलू चंद कहती हैं कि आज सपनों की तलाश में घर से दूर हूं,लेकिन अपनी संस्कृति और सभ्यता को कैसे भूल सकती हूं। मेरे लिए छठ पूजा एक पूजा नही, बल्कि एक परिवार का बड़ा उत्सव है. इसमें हम सभी भाई, बहन, मां, पापा, बुआ,फूफा सब एकत्रित होकर आस्था के साथ पूजा में शामिल होते हैं।

थाईलैण्ड में छठ व्रत करने वाली क्षेत्र के पोखरीगांव निवासिनी रीता चंद पत्नी अरूण चंद पिन्टू बताती हैं कि यहां सारे फल तो नहीं मिलते हैं लेकिन जो मिलता है उसी से छठ का व्रत रखती हूं। इस पावन पर्व में पति के साथ पूरे परिवार का पूरा सहयोग मिलता है। उनके अनुसार सूर्य ही एक ऐसे भगवान हैं जो साक्षात लोगों को दर्शन देते हैं। सिंगापुर में लोग हमारी परंपरा तो नहीं समझते हैं लेकिन सूर्य के प्रति हमारी आस्था को समझते हैं।

थाईलैण्ड में रह रही क्षेत्र के देवकली निवासी संतोष मद्देशिया की पत्नी बताती हैं कि छठ व्रत में उपयोगी सारी सामग्री मिल जाती है। वह अपने घर में ही घाट बना सूर्य को अ‌र्घ्य देती है। छठ व्रत आने से कुछ दिन पहले ही म्युजिक सिस्टम पर छठ गीत बजना शुरू हो जाता है। सभी लोग आस्था के सागर में डूब जाते है।उनका मानना है कि हम अपने बच्चों में भारतीय संस्कार को जीवंत रखना चाहते हैं। ताकि आने वाली पीढियां इसको अपने में बरकरार रखे।

रोजी-रोटी के कारण छठ में घर से दूर गोला के बांहपुर निवासी जितेन्द्र यादव,नागेन्द्र यादव,पतरा निवासी मिंकू वर्मा,दुर्गेश मिश्रा पिछले कयी सालों से भी ज्यादा वक्त से बैंकाक व कोरिया में रहते हैं। छठ पूजा पर इस बार घर नहीं आने पर बताते हैं कि रोजी-रोटी के कारण घर से इतना दूर रहना पड़ता है. लेकिन जब भी छठ पूजा का जिक्र होता है तो गांव के बगीचे,पोखरे,ठेकुआ और शारदा सिन्हा,मनोज तिवारी,खेसारी लाल आदि के छठ गीत याद आने लगते हैं।

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