भौतिक संसाधनों की सुख सुविधाएं, फिर भी गम्भीर समस्याएं

महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स) : एक समय था जब मनुष्य प्रकृति की गोद में रहते हुए अपना जीवन सुखमय व्यतीत करता । पेंड़ों की छाँव में या पेंड़ों पर रहता । मधुर फल तोड़कर खाता मस्त रहता । प्यासा होने पर नदियों ,तालाबों या कुओं का पानी पीता । जीव जन्तुओं से उतना ही प्रेम करता था जितना कि स्वयं से । पहाड़ों की गोद में अठखेलियां करता, गुफाओं और कन्दराओं में रहता । शीत, वर्षा एवं ग्रीष्म ऋतु को झेलता हुआ खूब आनंदित होता था ।
यहाँ तक ऐसा हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि पेंड़ – पौधे एवं जीव – जन्तु मनुष्यों से बातें किया करते थे । इसका तात्पर्य वैज्ञानिक आधार पर गलत हो सकता है किन्तु संवेदना जागृत होने पर कुछ भी असम्भव नहीं है । जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है –
हित अनहित पशु पच्छिउ जाना ।
मानुष तनु गुन ग्यान निधाना ॥
इसका अर्थ यह है कि पशु पक्षिओं को भी अपने भले और बुरे का ज्ञान भलीभांति होता है तो मनुष्य का शरीर तो गुणों का खान है ।
यदि संवेदना या हमदर्दी हो तो वहीं से प्रेम का उपज है । जहाँ प्रेम है वहीं सुखी जीवन का आधार है ।
आज हम चाहे जितना भी प्रगति कर लें । जितना भी भौतिक संसाधनों का सुख भोग लें । किन्तु अपनी अन्तरात्मा से सुखी अनुभव नहीं करते हैं । जितना ही सुख के पीछे भाग रहे हैं उतना ही दुःख के बोझ से दबते जा रहे हैं । दुःख का स्वयं कारण हम मानव ही हैं इसे समझने की जरूरत है । प्रत्येक समय भाग -दौड़ में लगे रहते हैं । उतना ही अनेक शारीरिक समस्याओं एवं मानसिक तनाव से युक्त हैं । इसका सिर्फ इतना ही कारण है कि हम इस भाग दौड़ के जीवन में प्रकृति से भी अत्यधिक दूरी बनाते जा रहे हैं । वह प्रकृति जिसमें हमारा अस्तित्व निहित है । जो माँ – बाप या ईश्वर की तरह हमारी देखभाल करती है और निःस्वार्थ भाव से भोजन, हवा एवं जल तथा उन सभी प्राकृतिक वस्तुओं को प्रदान करती है । हम उसी से दूर भाग रहे हैं । सिर्फ व सिर्फ प्रकृति का दोहन करते जा रहे हैं । विकास के दौर में खुद प्राकृतिक असन्तुलन के लिए हम जिम्मेदार हो रहे हैं । पेंड़ों की अन्धाधुंध कटाई, पहाड़ों को तोड़कर रास्ते बनाना, भूमिगत पेय जल का दुरुपयोग, वायु को प्रदूषित करना, भूमि को खोदकर खनिज पदार्थों को निकालकर भूमि को खोखला करना, नदियों पर बांध बनाकर उसके साथ छेड़छाड़ करना , अत्यधिक रासायनिक खादों एवं कीट नाशकों का प्रयोग करना आदि सभी के लिए तो हम मानव ही जिम्मेदार हैं । “पर्यावरण असंतुलन के बीज हम स्वयं बो रहे हैं ” ।
ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, सूखा,बाढ़, चक्रवात, सुनामी, भू – स्खलन एवं बादल फटने के रूप में हम प्राकृतिक दण्ड के शिकार भी हो रहे हैं । ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे उत्पन्न खतरे को प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं । गम्भीर एवं लाइलाज बिमारियों को झेल रहे हैं । कुछ बीमारियाँ तो ऐसी हैं जिनका अभी पूर्णतः वैज्ञानिक शोध भी नहीं हो पाया है । किन्तु इन सभी आपदाओं का सामना करते हुए भी अपनी आँखें नहीं खोल रहे हैं और प्राकृतिक दोहन करते जा रहे हैं । हमारा मानसिक संतुलन खोता जा रहा है और पूरा विश्व मानवीय युद्ध की विभीषिका झेल रहा है । तीसरे विश्व युद्ध की प्रबल संभावना बनते दिख रहा है । हम परमाणु युद्ध के द्वारा व्यापक विनाश के मुंहाने पर खड़े हैं । जो सम्पूर्ण सृष्टि के अस्तित्व के लिए प्रश्नचिह्न है ।
ऐसा माना जाता है कि इतिहास स्वयं को दुहराता है । जब भौतिक युग अपने चरम पर होगा और मनुष्य व्यापक विनाश झेल रहा होगा तभी प्राकृतिक युग का पुनः आरम्भ होगा । शेष बचे हुए लोग और जीव जन्तु पुनः पुराने ढर्रे पर चलने के लिए मजबूर होंगे और प्राकृतिक संरक्षण पर पूरा ध्यान केन्द्रित करेंगे । पेंड़ों की पूजा, नदियों की पूजा, पहाड़ों की पूजा व भूमि पूजन हम ऐसे ही नहीं करते आये हैं । इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य निहीत है । जाहिर सी बात है कि जिनका हम पूजा करेंगे उसे निश्चित रूप से क्षति नहीं पहुँचायेंगे और न ही क्षति पहुँचने देंगे । पीपल, नीम, तुलसी, पाकड़, बरगद ये सभी औषधीय गुणों की खान हैं । अत्यधिक छाया, आक्सीजन, एवं जीवाणु रहित वातावरण उत्पन्न करने में अतुलनीय योगदान है । यही कारण है कि इनकी पूजा की जाती है जिससे आध्यात्मिक एवं मानसिक शांति की अनुभूति हो सके । हम धरती को उजाड़ रहे हैं और मंगल ग्रह पर जीवन तलाश रहे हैं । उस पर बस्तियां बसाने की सोंच रहे हैं । यह कितना तर्क संगत है ?
“प्रकृति ही ईश्वर है । ” इसे आत्मसात करते हुए हम सभी अभी से जागृत हों और पारिस्थिकी तंत्र के संतुलन हेतु अपना अमूल्य योगदान करें ताकि स्वयं के अस्तित्व को बचाया जा सके । आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श स्थापित कर सकें । प्रकृति सुरक्षित है तो हम सभी सुरक्षित हैं ।रूसो ने कहा भी है , ” प्रकृति की ओर लौटो । ” तो आईए हम पुनः प्रकृति की ओर लौटते हुए अपनी धरती की रक्षा करें और आने वाली तमाम प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति पायें ।

रवीन्द्र शर्मा
नगर पंचायत – परतावल, जनपद – महराजगंज, उ०प्र० ।