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एक बार पुनः राजतंत्र की तरफ बढ़ रहा है नेपाल?

काठमांडू के भक्तपुर में बड़ी संख्या में नेपाली जनता ने राजा ज्ञानेन्द्र का किया भव्य स्वागत

हिंदू राष्ट्र के बिना नेपाल का विकास असंभव, सनातन संस्कृति को बचाना हमारा धर्म – कमल थापा पूर्व उपप्रधानमंत्री नेपाल

हर्षोदय टाइम्स : उमेश चन्द्र त्रिपाठी

काठमांडू/महराजगंज : नेपाल में त्राहि-त्राहि मचा हुआ है। बेतहाशा मंहगाई की मार से नेपाली जनता प्रचंड की वर्तमान सरकार से बेहद नाराज और आक्रोशित है। इस लिए समूचे नेपाल में राजा को वापस लाने के लिए जगह-जगह धरना-प्रदर्शन और आंदोलन हो रहे हैं। यही कारण है की बीते दिनों काठमांडू में हजारों नेपाली जनता ने राजा ज्ञानेन्द्र का उस समय भव्य रूप से स्वागत और अभिनन्दन किया जब वह पशुपति नाथ मंदिर में दर्शन करने जा रहे थे। राजा ज्ञानेन्द्र को अपने बीच पाकर लोग राजा लाओ देश बचाओ के नारे लगा रहे थे।

राजा ज्ञानेन्द्र के भक्तपुर पहुंचते ही वहां जनसैलाब उमड़ पड़ा। राजा ज्ञानेन्द्र ने भी जनता का अभिवादन स्वीकार करते हुए देश के खुशहाली के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। अपार भीड़ से लबरेज राजा ज्ञानेन्द्र ने कहा कि नेपाल एक कठिन दौर से गुजर रहा है। मंहगाई और बेरोजगारी को लेकर जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई है। लोग हैरान परेशान हैं। गरीब जनता को न्याय नहीं मिल रहा है। देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। इन सब परिस्थितियों से हमें बाहर निकलना होगा। उन्होंने कहा की केन्द्र और राज्य की सरकारें जनता की अपेक्षाओं, आकांक्षाओं के प्रति खरी नहीं उतरी। ऐसे में नेपाल में बदलाव की सख्त जरूरत है।

बताते चलें कि बीते पांच साल पहले दो नेपाली नौजवानों को बुटवाल में पुराने राष्ट्रगान को गाने की वजह से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने उन पर ‘अभद्रता के प्रदर्शन’ का आरोप लगाया था।

इन दोनों ही नौजवानों की गिरफ्तारी के बाद काठमांडू में उनके साथियों ने देश भर में पुराने राष्ट्रगान को गाने का अभियान शुरू करने की घोषणा की। ये नौजवान नेपाल में फिर से राजतंत्र और हिंदू राज की स्थापना की मांग कर रहे थे। नौजवानों के इस समूह ने राजा ज्ञानेंद्र और महारानी कोमल की तस्वीर वाली टी-शर्ट भी लोगों के बीच में बांटनी शुरू की। टी-शर्ट बांटने के दौरान वे पुराने राष्ट्रगान को भी गाते थे। नौजवानों के इस ग्रुप का नाम है ‘वीर गोरखाली अभियान.’

उधर कमल थापा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी से असंतुष्ट नौजवानों ने इस अभियान की शुरुआत की थी। टी-शर्ट बांटने और राष्ट्रगान गाने से आगे बढ़ते हुए राजतंत्र की मांग करने वाला यह अभियान उस समय विरोध-प्रदशर्नों की शक्ल लेने लगा था। उस समय देश भर में इसे लेकर आंदोलन खड़े होने लगे थे। कई गैर मान्यता प्राप्त पार्टियां इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहीं थीं। खास तौर पर बड़े शहरों में नौजवान मोटर बाइक पर रैलियां निकाल रहे हैं और ‘राजा ही आकर देश को बचाएंगे’ का नारा दे रहे थे। लोग अपनी इन गतिविधियों को सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर प्रचारित-प्रसारित करने में भी लगे हुए थे।


हालांकि आंदोलन की शक्ल लेते इन विरोध प्रदर्शनों को लेकर लोकतंत्र समर्थकों का कहना था कि यह मौजूदा सरकार के प्रति लोगों के अंसतोष की वजह से हैं। इसकी वजह से राजतंत्र की हिमायत करने वाले लोगों को मौका मिल गया है। देश के कई हिस्सों में चलने वाले ये विरोध-प्रदर्शन विभिन्न समूहों की ओर से आयोजित किए जा रहे थे। विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करने वालों में से एक सौरभ भंडारी के मुताबिक हाल में हुए इन विरोध-प्रदर्शनों की ‘वीर गोरखाली अभियान’ के बैनर तले 8 सितंबर 2018 से शुरुआत हुई थी। उन्होंने बताया कि प्रशासन की ओर से इसे दबाने की वजह से यह हमारे उम्मीदों के हिसाब से नहीं हो पाया और हमें कुछ समय के लिए अपना आंदोलन रोकना पड़ा।
लेकिन इसके बाद 30 अक्तूबर 2018 को बुटवल में मोटर बाइक रैली के रूप में इसकी फिर से शुरुआत की गई थी।


माना जाता है कि उसमें बड़े पैमाने पर लोगों ने हिस्सा लिया था। इसके बाद से ही कई बैनरों के तले अब तक राजतंत्र की फिर से बहाली को लेकर विरोध-प्रदर्शन हो चुके हैं। इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व राष्ट्रवादी नागरिक समाज, नेपाल विद्वत् परिषद्, स्वतन्त्र देशभक्त नेपाली नागरिक, पश्चिमांचल बासी नेपाली जनता, नेपाल राष्ट्रवादी समूह, राष्ट्रिय शक्ति नेपाल, 2047 का संविधान पुनर्स्थापना अभियान जैसी संस्थाएं कर रही हैं। हालांकि सौरभ भंडारी का कहना है कि वीर गोरखाली अभियान के माध्यम से जिन नौजवानों को इकट्ठा किया जा रहा है वो इन सभी संगठनों के विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं। राष्ट्रीय नागरिक आंदोलन की ओर से शनिवार को काठमांडू में विरोध-प्रदर्शन आयोजित किया गया जबकि दूसरे ग्रुप्स ने देश के दूसरे हिस्सों में धरना-प्रदर्शन किया।


कोरोना वायरस महामारी को लेकर नेपाल की सरकार ने इन विरोध-प्रदर्शन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी। लेकिन सरकार की चेतावनी को अनसुना कर देश के कई हिस्सों में मोटर बाइक रैली और विरोध-प्रदर्शन किए गए थे। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि उनके आंदोलन का कोई अकेला नेता नहीं है और न ही कोई एक ताकत इसका नेतृत्व कर रही है।

‘राष्ट्रिय नागरिक आन्दोलन’ के को-ऑर्डिनेटर बालकृष्ण न्यौपाने कहते हैं, “यह नागरिकों की ओर से शुरू होने वाला तात्कालिक आंदोलन है। पत्रकार और लेखक युवराज गौतम नेपाल में राजतंत्र की जरूरत की वकालत करते हैं। वे कहते हैं, “इस आंदोलन का कोई नेता नहीं है लेकिन एक नीति जरूर है इसलिए इससे कोई नेता निकल सकता है।

आंदोलनकारियों की मांग

आंदोलन में हिस्सा लेने वाले प्रदर्शकारी मुख्य तौर पर पुराने संविधान की बहाली की मांग कर रहे हैं। आंदोलन में शामिल सभी समूह राजतंत्र की फिर से बहाली को लेकर तो एकमत है लेकिन हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर उनके विचार अलग-अलग हैं। कुछ समूह जहां धर्मनिरपेक्ष हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे हैं तो वहीं कुछ हिंदू साम्राज्य की स्थापना चाहते हैं।


इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाला वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन हिंदू सम्राज्य की मांग कर रहा है। वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन की इंटरनेशनल कमिटी की महासचिव अस्मिता भंडारी कहती हैं, “हम हिंदू साम्राज्य में यकीन रखते हैं। इसलिए हम इस आंदोलन का समर्थन और सहयोग कर रहे हैं। ‘राष्ट्रिय नागरिक आन्दोलन’ के को-ऑर्डिनेटर न्यौपाने कहते हैं कि नेपाल को हिंदू, बौद्ध और किरात आधारित धार्मिक राज्य होना चाहिए। वो कहते हैं, “हम इस बात को मानते हैं कि नेपाल को सिर्फ हिंदू राज्य नहीं बल्कि बौद्ध और किरात धर्मों वाला भी होना चाहिए।

क्यों चाहते हैं राजतंत्र

पत्रकार युवराज गौतम का कहना है कि राजनीतिक दलों के द्वारा देश को बर्बाद किया जा रहा है। जो लोग एक मजबूत राष्ट्रवाद की जरूरत की वकालत करते हैं, वो इस आंदोलन के साथ जुड़ते हुए नजर आ रहे हैं। वे एक मजबूत विकल्प की तलाश कर रहे हैं।
वे कहते हैं कि नेपाल के युवा इस बात को लेकर काफी नाराज हैं कि नेपाल राष्ट्र हित के नाम पर विदेशियों और नेताओं के हाथ की कठपुतली बनता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर प्रोफेसर कृष्ण खनाल जैसे लोग लोकतंत्र के मजबूत पैरोकार हैं। वे कहते हैं कि इस आंदोलन के प्रति युवाओं का आकर्षण मौजूदा सरकार के कामकाज के तरीकों की वजह से बढ़ रहा है।


वे कहते हैं कि सरकार लोगों की उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतर पाई है।


वे कहते हैं, “सरकार की नाकामी और सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव इस आंदोलन के बढ़ने की वजह मालूम होती है। वे राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के ऊपर भी संदेह जताते हैं कि इस आंदोलन के पीछे उनका हाथ है।


वे कहते हैं, “यह देखते हुए कि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी कोई खास असर नहीं पैदा कर पा रही है ऐसा लगता है कि सिविल मूवमेंट के सहारे इसे करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन प्रदर्शनकारी इन आरोपों को खारिज करते हैं। न्यौपाने कहते हैं, “राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी की वजह से ही इस तरह के हालात पैदा हुए हैं और उन्होंने राजतंत्र को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमने कहा कि हर किसी की संपत्ति की जांच होनी चाहिए। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेताओं की संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए।
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के निजी सचिव सागर तिमिलिस्ना साफ करते हैं कि राजतंत्र के लिए पूरे देश में चल रहे मौजूदा आंदोलन में राजा की कोई भूमिका नहीं है। वे कहते हैं, “हमारा कुछ भी लेना देना नहीं है लेकिन हम आंदोलन पर नजर बनाए हुए हैं।

ये आंदोलन अभी और जोर पकड़ रहा है इसके पीछे कुछ दूसरी वजहें भी हैं?

इतिहासकार महेश राज पंत ने कहा था कि नेपाल में पहली बार मंदिरों में पूजा बंद की गई है। कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए सरकार ने मंदिरों को बंद करने का फैसला लिया है।
ऐसा माना जा रहा है कि पशुपतिनाथ मंदिर को बंद करने के फैसले ने हिंदुओं को काफी नाराज किया है। ये लोग अब राजतंत्र की मांग कर रहे हैं और प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं।


सूत्रों के मुताबिक जनकपुर में 26 नवंबर 2018 को नेपाल नेशनलिस्ट ग्रुप की ओर से आयोजित कार्यक्रम का प्रबंधन मंदिर के पुजारियों ने ही किया था।


वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन की अस्मिता भंडारी का कहना है कि कई धार्मिक समूह इस आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं क्योंकि नेपाल की संस्कृति को बदलने की कोशिश की जा रही है।

सरकार का पक्ष

देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों को लेकर गृह मंत्रालय का कहना है कि सरकार इस नजर बनाए हुए है।
सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का कहना है कि लोकतंत्र, संघवाद और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ ये आंदोलन कामयाब नहीं हो पाएगा। वो इसे ‘प्रतिक्रियावादियों की ओर से दिन में सपने’ देखने जैसा बता रहे हैं।

कमल थापा पूर्व उप प्रधानमंत्री नेपाल


उधर हिंदू राष्ट्र की पुरजोर वकालत करने वाले नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री कमल थापा का कहना है कि नेपाल में जहां एक तरफ राजतंत्र की आवश्यकता है वहीं दूसरी तरफ हिंदू राष्ट्र होना अतिआवश्यक है। उन्होंने कहा कि अभी यह आंदोलन और जोर पकड़ेगा। नेपाली जनता वर्तमान सरकार के क्रियाकलापों से पूरी तरह त्रस्त है। जिसे बाहर निकलना होगा। उन्होंने कहा कि अब नेपाल में जगह-जगह गायों को भी काटा जा रहा है। इसे रोकना होगा। इस जघन्यतम कार्य से नेपाल क हर हिन्दू उद्वेलित और दुखी है। जबकि गाय हमारी माता है। हम सभी हिन्दू गाय की पूजा करते हैं।

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