उत्तर प्रदेशमहराजगंज

मां बनैलिया के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मुराद होती है पूरी

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स) : भारत-नेपाल सीमा के करीब बसे महराजगंज जनपद के नौतनवां कस्बे में बनैलिया माता का मंदिर भारत ही नहीं नेपाल के भी श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ लगती है। विदेश से नेपाल पर्यटन के लिए जाने वाले पर्यटक भी इस मंदिर पर रूकते हैं। मंदिर परिसर में हमेशा में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। मन की मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु यहां हाथी बनवाते हैं।

मंदिर के पुजारी जीतेंद्र पांडे

मंदिर के पुजारी जीतेंद्र पांडे ने बताया कि जहां आज मंदिर है, वहां पहले जंगल था, यह थारू समाज की जमीन थी। घने जंगल को काटकर किसान केदारनाथ मिश्र खेती करते थे। एक दिन काम करते वह दिन में वहीं सो गए। उस समय उन्होंने स्वप्न देखा एक देवी ने कहा कि जहां खेती करते हो वहां मैं निवास करती हूं। उस स्थान पर मंदिर बनवाओ और मैं सबका कल्याण करूंगी। नींद खुलने के बाद वह घर गए जहां रात को सोए हुए थे। उन्होंने पुनः स्वप्न देखा। सुबह जागकर परिजनों व गांव के लोगों को पूरी कहानी बताई। उसके बाद वर्ष 1888 उन्होंने उस स्थान पर जनसहयोग से एक छोटा सा मंदिर बनवाया। जंगल होने के कारण उसी समय से उसका नाम वनदेवी दुर्गा मंदिर के नाम से जाना जाने लगा । धीरे धीरे उसका नाम बनैलिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मंदिर के कब कौन पुजारी रहे

वर्ष 1938 में पुजारी रामप्यारे दास आए और 1946 तक पुजारी रहे। दूसरे पुजारी रामप्रीत दास 1946 से 1959 तक रहे। तीसरे पुजारी कमलनाथ 1959 से 1973 तक रहे। चौथे पुजारी महातम यादव 1973 से 1996 तक रहे। उसके बाद पुजारी काशी दास 1996 में आए और 9 वर्ष तक रहे। उन्हीं के देखरेख में पुराने मंदिर के जगह नए मंदिर का जीर्णोद्धार व नई प्रतिमा का अनावरण तथा प्राण प्रतिष्ठा किया गया।

हर वर्ष मनाया जाता स्थापना दिवस

मंदिर के प्रबंधक ऋषि राम थापा

मंदिर के प्रबंधक ऋषि राम थापा ने बताया कि 20 जनवरी 1951 को इस मंदिर में नई मूर्ति स्थापित किया गया था तभी से हर साल मंदिर परिसर में वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। वार्षिकोत्सव के दौरान समाज के हर वर्ग के लोगों का हमेशा सहयोग मिलता रहता है। मंदिर परिसर से हर साल 20जनवरी से भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है।

कभी पांडवों ने किया था विश्राम

मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव नेपाल के राजा विराट के वहां जाते समय यहां रात्रि विश्राम किए थे। पुजारी जीतेंद्र पांडे ने बताया कि इतिहास में इन तथ्यों का वर्णन आता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी मंदिर का विशेष महत्व है।

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