जिले का कण-कण भगवान बुद्ध के चरण रज से है गौरवान्वित- यशोदा श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार

उमेश चन्द्र त्रिपाठी
महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स) : देवदह महोत्सव के तीसरे दिन नौतनवां विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत बनर्सिहा कला में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत कर भगवान बुद्ध और बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर नमन किया। इस स्थल को भगवान बुद्ध के ननिहाल के रूप में जाना जाता है।
इतिहासकार व चीनी यात्रियों के बुद्ध स्थलों के यात्रा वृत्तांत में स्पष्ट है कि नेपाल सीमा पर स्थित महराजगंज जिले का देवदह बुद्ध का ननिहाल है। इसकी पहचान महारानी मायादेवी, प्रजापति गौतमी और राजकुमारी यशोधरा के मायके के रूप में की गई है। पूरी दुनिया को अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध के ननिहाल देवदह को वैसी पहचान नहीं मिल पा रही है जैसा कि इसकी महत्ता है। यूं तो महराजगंज जिले का कण-कण भगवान बुद्ध के चरण रज से गौरवान्वित है लेकिन ठूठीबारी से उज्जैनी तक का क्षेत्र बौद्ध कालीन इतिहास के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। यहां देवदह, रामग्राम, कुंवरवर्ती स्तूप, पिप्पलिवन स्थिति है। इन सभी बुद्ध स्थलों को चिन्हित कर इसे भगवान बुद्ध की तीर्थ स्थली के साथ पर्यटन हब के रूप में विकसित किए जाने की आवश्यकता है।
साल 1978 में पुरातत्व विभाग ने यहां 88.8 एकड़ भूमि संरक्षित कर किसी भी प्रकार के निर्माण और खनन पर रोक लगा दी थी। लेकिन बाद के समय में संरक्षित भूमि में 20 किसानों के नाम पट्टा और चक नंबर जारी कर दिया गया। ऐसे में अब इस टीले के नाम मात्र 1.04 एकड़ जमीन बची है।
नेपाल में स्थित बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी जहां विकसित होकर विश्व फलक पर एक मुकाम हासिल कर लिया है वहीं नेपाल सीमा के सिद्धार्थनगर और महराजगंज जिले के पिपरहवा और देवदह अपेक्षित विकास को तरस रहा है। जबकि मौजूदा और पूर्व के मुख्यमंत्रियों ने इसके विकास की घोषणा कई बार की है। पिपरहवा और देवदह दोनों ही स्थल बुद्ध अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तीर्थ स्थल या पर्यटकीय दृष्टि से इसका विकास हो जाय तो यह विदेशी मुद्रा अर्जन का बड़ा जरिया हो सकता है। भारत सीमा के सोनौली के रास्ते लुंबिनी जाने वाले हजारों विदेशी बुद्धिस्ट एक बार पिपरहवा और देवदह जरूर आना चाहेंगे।
देवदह गौतम बुद्ध की मां महामाया, मौसी महाप्रजापति गौतमी की जन्मस्थली है। सम्राट हर्षवर्धन के शासन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों का भ्रमण किया था। इसी क्रम में वह देवदह भी आया था। 1991 में पुरातत्विक सर्वेक्षण विभाग की पटना इकाई ने यहां आंशिक खनन कराया था। खनन टीम ने अपनी रिपोर्ट में यहां के स्तूप को गुप्त काल से पहले का बताया था । रामग्राम भी बौद्ध युगीन कोलिय जनपद की राजधानी थी, जहां भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद उनकी अस्थियों के आठवें भाग पर एक धातु स्तूप निर्मित किया गया। तीसरा अहम स्थल है कुंवरवर्ती स्तूप। यहां गृहत्याग के बाद भगवान बुद्ध ने अपने राजसी वस्त्र को त्याग कर सन्यासी का वेश धारण किया था।
इस कार्यक्रम में सांसद और केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी , फरेंदा के विधायक वीरेंद्र चौधरी , नौतनवां नगर पालिका के अध्यक्ष बृजेश मणि त्रिपाठी , आनंद नगर टाउन एरिया के प्रथम चेयरमैन जय प्रकाश लाल , कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदामोहन उपाध्याय,वरिष्ठ समाजसेवी राम प्यारे प्रसाद , पत्रकार सुधेश मोहन, टीवी पत्रकार पत्रकार रवि त्रिपाठी , एडवोकेट विजय सिंह , समाजसेवी डा. रामनरायण प्रसाद चौरसिया आदि गणमान्य जनों ने शिरकत कर महोत्सव को शोभायमान किया।