नेपाल में भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार क्यों ?

उमेश चन्द्र त्रिपाठी
महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स) : भारतीयों के प्रति नेपाली नागरिकों और नेपाल पुलिस का रवैया अभद्र जैसा क्यों है। नेपाल के नागरिकों में वे जो खांटी पहाड़ी लोग हैं, नेपाल जाने पर भारतीयों से बड़ा रुखा व्यवहार करते हैं, कभी कभी तो जरा जरा सी बात पर मार पिटाई पर उतर आते हैं वहीं नेपाल पुलिस अपने वाहनों से नेपाल जाने वाले भारतीयों को कदम कदम पर तंग करने से बाज नहीं आती। यह हाल तब है जब नेपाल में पर्यटक के रूप में जाने वाले भारतीयों की संख्या अन्य किसी भी देश से बहुत अधिक है और वहां के बजारों में उपलब्ध विदेशी वस्तुओं के ग्राहक भी अधिकतर भारतीय ही रहते हैं।
भारत के लोग नेपाल से खुद को कभी अलग नहीं समझते। भारत आये नेपाली लोगों को भारतीय नागरिक कभी भी तंग नहीं करते हैं और भारतीय पुलिस भी उन्हें सदैव सुरक्षा देती रहती है। इसका उदाहरण है कि नेपाल के पहाड़ से एक नहीं हजारों की संख्या में पहाड़ी लोग भारत के कस्बों और गांवों में फेरी कर व्यापार करते हैं। आये दिन झुंड के झुंड पहाड़ी लोग नेपाल में बने ऊनी कपड़े, हींग तमाम जड़ी बूटी बेंचते हुए देखे जा सकते हैं। इन्हें कोई नहीं तंग करता। गांवों में तो इन्हें बाकायदा रहने और खाने पीने का इंतजाम भी कर देते हैं। नेपाल में भारतीयों के साथ ऐसा सद्भाव शायद ही कहीं देखने को मिले। नेपाल में भारतीय दूतावास और प्रचंड सरकार को इस पर गौर करना चाहिए। हमारे पड़ोसी और मित्र राष्ट्र कहे जाने वाले इस नन्हें राष्ट्र में भारतीयों के साथ ऐसी अभद्रता हाल के कुछ वर्षों में होनी शुरू हुई है। कोई भारतीय नेपाल में अभद्रता का शिकार हो रहा या उसके साथ मार पिटाई हुई तो पुलिस उनके साथ न्याय नहीं करती है।
पीड़ित भारतीय नागरिक यदि पुलिस थाने में गया तो पुलिस वाला उसे ही दोषी ठहराने की भरसक कोशिश करता है। नेपाल में भारतीयों से हो रहे हद दर्जे तक भेदभाव देखकर कहना मुश्किल है कि दोनों देशों के बीच रोटी बेटी का रिश्ता भी है। नेपाल में भारतीयों के साथ अमन की घटनाओं के उदाहरण अनेक है। अमूमन भारतीय पर्यटक निजी या किराये के भारतीय वाहनों से नेपाल घूमने जाना पसंद करता है। काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर भारतीयों के आकर्षण का प्रमुख धार्मिक स्थल है। इसके अलावा भारतीय सीमा से सटे भी कुछ रमणीय स्थल है जहां भारतीय लोग जाते रहते हैं। इनमें से एक तो विश्व प्रसिद्ध बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी ही है जहां लोग जाते हैं। यहां कई देशों के सैकड़ों पर्यटक प्रतिदिन मौजूद रहते हैं तो सैकड़ों की संख्या में भारतीय पर्यटक भी रहते हैं।
लुंबिनी जाने के लिए सुविधा पास की व्यवस्था नहीं है। पहले नेपाल कस्टम पर मामूली रकम अदा कर वाहनों के पास मिल जाते थे जिसकी समय सीमा जारी होने के समय से रात दस बजे तक रहती थी। नेपाल सरकार ने हाल ही इस सुविधा को खत्म कर दिया है और पहले की अपेक्षा अधिक कस्टम ड्यूटी भी भारतीय वाहनों पर लगा दिया है। बहरहाल इससे खास परेशानी नहीं है। परेशानी तब होती है जब कस्टम ड्यूटी अदा कर नेपाल जाने पर जगह जगह पुलिस के लोग यह कागज नहीं है वह कागज नहीं है’ के नाम पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं।

यदि आप काठमांडू जा रहे हैं तो बुटवल से लगायत काठमांडू सीमा तक आप को नेपाल पुलिस से जूझना पड़ेगा। इससे पूरा समय बर्बाद होता ही है, उनका बर्ताव भी निहायत ही अपमान जनक होता है। गाड़ी जब्त करने की धमकी देने के साथ जुर्माना की रकम इतना बताते हैं कि मन करेगा गाड़ी ही छेड़ कर वापस आ जाएं। चूंकि गाड़ी के कागजात में कोई कमी रहती नहीं इसलिए उनकी बड़ी मांग पूरी नहीं हो पाती है। लेकिन जितना डिटेन करेंगे उतनी देर में मन इतना खिन्न हो जायेगा कि दुवारा नेपाल न आने का नाम नहीं लेंगे। जिसके कारण इस दौर से गुजरने वाले तमाम भारतीय नागरिक नेपाल आना छोड़ चुके होंगे। नेपाल में एक जगह है सूपा देउराली यह एक सिद्ध मंदिर है भारतीय लोग वहां भी जाते हैं।