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लुंबिनी ही नहीं, समूचा नेपाल आर्थिक संकट में – ज्योतेंद्र मोहन चौधरी प्रोपराइटर होटल मनीष मेंसन व पूर्व मंत्री नेपाल

नेपाल में पर्यटन और उद्योग दोनों धाराशाई, कर्ज के दलदल में फंसे होटल व्यवसाई – एकराम, प्रोप्राइटर होटल ग्रैंड कैसमो परसा लुंबिनी नेपाल

मनोज कुमार त्रिपाठी/ उमेश चन्द्र त्रिपाठी

लुंबिनी नेपाल/महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स) : नेपाल के पूर्व मंत्री व होटल मनीष मेंसन के प्रोप्राइटर ज्योतेंद्र मोहन चौधरी ने आज लुंबिनी में एक पत्रकार वार्ता में कहा कि सरकार की ढुलमुल नीति के कारण केवल लुंबिनी ही नहीं समूचा नेपाल आर्थिक संकट से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि नेपाल सरकार की नीतियां ही पूरी तरह से जनविरोधी है। लुंबिनी भगवान बुद्ध की जन्मस्थली है जहां प्रति वर्ष लाखों कि संख्या में पर्यटक आते हैं जिससे नेपाल के लोगों को रोजगार मिलता है। जिससे उनकी जीविका चलती है। बौद्ध पर्यटकों को देखते हुए नेपाल सरकार ने लुंबिनी में 6 अरब रूपए की लागत से गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट का निर्माण किया भी किया है। बावजूद इसके अभी तक इस अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट पर अलजजीरा को छोड़कर एक भी अंतर्राष्ट्रीय विमान यहां लैंड नहीं किया। जबकि इसका उद्घाटन डेढ़ साल पहले प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड कर चुके हैं।

हर्षोदय टाइम्स के संवाददाता मनोज त्रिपाठी


वहीं परसा लुंबिनी स्थित होटल ग्रैंड कैसमो के प्रोप्राइटर एकराम ने कहा है कि नेपाल भारत एक मित्र राष्ट्र है। दोनों देशों के रोटी-बेटी के संबंध हैं। ऐसे नेपाल सरकार को भारत से अंतर्राष्ट्रीय उड़ान के लिए मदद लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि लुंबिनी, भैरहवा और बुटवल के होटल व्यवसाई बैंको से अरबों रुपए  कर्ज लेकर होटल का निर्माण किए हैं। अंतर्राष्ट्रीय उड़ान बाधित होने से उनका व्याज भी नहीं निकल पा रहा है। होटल बंद के कगार पर हैं। लुंबिनी में विदेशी पर्यटकों की संख्या सून्य है। उन्होंने कहा कि नेपाल सरकार ने इस संबंध में में अभी तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की है। सरकार पूरी तरह फेल है।उन्होंने कहा कि सिद्धार्थ संज्जाल एसोशिएशन सहित कई संघ संस्थाओं ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड को इस मामले को सुलझाने के लिए नेपाल और नेपालियों के हित में ज्ञापन पत्र देकर एक अच्छा काम किया है। उन्होंने आगे कहा कि  भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी बीते दिनों लुंबिनी आए थे तो यहां के व्यवसायियों में आस जगी थी कि अब यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा जिससे उनको विदेशों में पलायन नहीं करना पड़ेगा।

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