उत्तर प्रदेशमहराजगंज

नेपाल में वामपंथियों को सता रहा है पुनः राजशाही की वापसी का डर? प्रचंड ने काठमांडू को बनाया जंग का मैदान?

मनोज कुमार त्रिपाठी

काठमांडू : नेपाल में एक चौंकाने वाले राजनीतिक घटनाक्रम ने इस हिमालयी देश को चीन के करीब कर दिया है। इससे भारत की मुश्किलें बढ़ने का अंदेशा जताया जा रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड ने पिछले हफ्ते नेपाली कांग्रेस का साथ छोड़कर चीन के कट्टर समर्थक केपी शर्मा ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी यूएमएल के साथ गठबंधन कर लिया था। यह घटनाक्रम तब सामने आया, जब नेपाली विदेश मंत्री कुछ हफ्ते पहले ही भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की थी। नेपाल की दो सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टियों का एक होना और मालदीव में भारत का पीछे हटना चीन के बढ़ते प्रभाव का संकेत माना जा रहा है। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अपने पद की गरिमा से उलट चीन के गुलाम जैसा काम कर रहे हैं।

चीन के करीबी हैं कम्युनिस्ट नेता

निक्केई एशिया से बात करते हुए काठमांडू स्थित राजनीतिक टिप्पणीकार युबराज घिमिरे ने कहा कि भारत के बारे में कुछ राजनीतिक दलों में गहरी नापसंदगी है। हालांकि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ोसी है, लेकिन कई राजनीतिक दल इस पर भरोसा नहीं करते हैं। यह अक्सर उन्हें भारत के प्रभाव के प्रति संतुलन के रूप में चीन की ओर ले जाता है। भारत के प्रभाव को कम करने के विपक्ष के आह्वान के बावजूद, दिल्ली ने श्रीलंका में वह कूटनीतिक जमीन वापस पा ली है जो उसने चीन से खो दी थी। भूटान और बांग्लादेश में भी भारत मजबूत स्थिति में है, जहां हाल ही में फिर से निर्वाचित प्रधान मंत्री शेख हसीना के साथ दिल्ली के मजबूत संबंध हैं।

भारत-चीन के बीच बुरा फंसा नेपाल

हालांकि, नेपाल में घटनाक्रम से अटकलें तेज हो गई हैं कि भारत-चीन विवाद में नेपाल बुरी तरह से फंसने वाला है। नेपाल में सत्ता परिवर्तन पर भारत ने आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, पर्यवेक्षकों का कहना है कि नेपाल में सत्ता परिवर्तन भारत के लिए एक स्पष्ट झटका है, क्योंकि नए गठबंधन में कई छोटी वामपंथी पार्टियां भी शामिल हैं। इसके विपरीत, चीन ने तुरंत नए गठबंधन को बधाई दी और मजबूत संबंधों का आह्वान किया। इस घटना ने उन अफवाहों को हवा दी कि उसने इस बदलाव में पर्दे के पीछे की भूमिका निभाई है। इस बदलाव के कुछ दिनों बाद एक चीनी सैन्य प्रतिनिधिमंडल ने नेपाल का दौरा किया और बाद में रक्षा सहयोग बढ़ाने का वादा किया।

नेपाल में अमेरिका की भी टेंशन बढ़ी

नेपाल में वामपंथी गठबंधन की एकता पर अमेरिका की भी टेंशन बढ़ गई है। ऐसी रिपोर्ट है कि अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर नेपाली नेताओं को इस तरह के कदम के खिलाफ आगाह किया था। इस पर घिमिरे ने कहा कि भारत और अमेरिका ने यह सुनिश्चित करने के लिए महीनों तक काम किया कि कम्युनिस्ट काठमांडू में मिलकर सरकार न बनाएं। लेकिन दोनों देश निश्चित रूप से उस प्रयास में विफल साबित हुए हैं।

नेपाली कांग्रेस से क्यों अलग हुए प्रचंड

कहा जा रहा है कि यह उथल-पुथल प्रचंड की इस चिंता के कारण हुई है कि उनके गठबंधन सहयोगी गुट धर्मनिरपेक्षता पर बहस फिर से शुरू करने जा रहे हैं। इसे कुछ लोगों ने भारत के मौन समर्थन के साथ नेपाल की हिंदू राजशाही को बहाल करने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा। नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड एक पूर्व माओवादी गुरिल्ला नेता हैं। उन्होंने ने भारत द्वारा 2006 में शत्रुता समाप्त करने वाले शांति समझौते से पहले शाही व्यवस्था के खिलाफ एक दशक लंबे विद्रोह का नेतृत्व किया था। इसके दो साल बाद, देश की 240 साल पुरानी राजशाही को समाप्त कर दिया गया और नेपाल एक गणतंत्र में बदल गया।

नेपाल में चीन का बढ़ रहा प्रभाव

नेपाल के राजनीतिक गठबंधनों का अल्पकालिक होने का एक लंबा इतिहास रहा है। इस देश में चीन का प्रभाव भी काफी तेजी से बढ़ा है। नेपाली कम्युनिस्टों और चीन के संबंध पारंपरिक रूप से तिब्बत की सुरक्षा और नेपाल में तिब्बती समर्थकों के चीनी विरोधी गतिविधियों को रोकने से जुड़े हुए हैं। ऐसे में नई सरकार के गठन के बाद अब प्राथमिकता चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत रुकी हुई परियोजनाओं पर केंद्रित हो गई है, जो चीन की दूसरे देशों को कर्ज के जाल में फंसाने वाला विश्वव्यापी अभियान है। इस परियोजना ने कई देशों को कर्ज में डूबो दिया है। नेपाली नेताओं ने बीआरआई परियोजनाओं के लिए चीन के वित्त पोषण के अनुदान हिस्से में पर्याप्त वृद्धि की मांग की है।

बीआरआई से नेपाल को कर्ज से पाट रहा चीन

नेपाल में पूर्व भारतीय राजदूत रंजीत राय ने मीडिया से कहा कहा कि बीआरआई परियोजनाओं को लागू करना इतना आसान नहीं हो सकता है। नेपाली नेतृत्व चिंतित है कि चीनी वित्त पोषित परियोजनाएं, जो ज्यादातर वाणिज्यिक ऋण के तहत हैं, श्रीलंका जैसा आर्थिक संकट पैदा कर सकती हैं। राजनीतिक टिप्पणीकार देव राज दहाल ने कहा, लेकिन भले ही हालिया घटनाक्रम से चीन को फायदा हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत तस्वीर से बाहर हो गया है। उन्होंने कहा कि चीन नेपाल का पूरा बोझ अपने कंधे पर नहीं उठाना चाहता।

भारत से नेपाल के ऐतिहासिक संबंध

नेपाली नागरिकों को 1950 की संधि के तहत विशेष विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जो उन्हें भारत में काम करने, रहने और निवेश करने के साथ-साथ इसके सशस्त्र बलों में शामिल होने की अनुमति देता है। भारत, जमीन से घिरे नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत है। भारत नेपाल जैसे अपने पड़ोसी छोटे देश को अन्य देशों के साथ व्यापार के लिए अपनी सड़कों और बंदरगाहों का उपयोग करने देता है। हालांकि नए गठबंधन में ओली की मौजूदगी से भारत सतर्क है। ओली ने ही भारत के खिलाफ विरोध अभियान का नेतृत्व किया था और देश का विवादित नक्शा जारी किया था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}