33 वें स्थापना दिवस पर 20 जनवरी को नौतनवां नगर में माता बनैलिया की निकलेगी भव्य शोभायात्रा, सज गया दरबार

मनोज कुमार त्रिपाठी/उमेश चन्द्र त्रिपाठी
नौतनवां/ महराजगंज: 20 जनवरी को नौतनवां नगर में स्थित माता बनैलिया के 33 वें स्थापना दिवस पर भव्य शोभायात्रा यात्रा निकाली जाएगी। इसकी जानकारी मंदिर के व्यवस्थापक ऋषि राम थापा ने दी है।
बता दें कि भारत-नेपाल सीमा के करीब बसे नौतनवां कस्बे में बनैलिया माता मंदिर भारत ही नहीं नेपाल के श्रद्धालुओं के भी आस्था का केंद्र है। यहां हर समय श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। विदेशों से भारत के रास्ते नेपाल जाने वाले पर्यटक के भी इस मंदिर पर रूकते हैं और पूजा-पाठ कर माता का आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर नेपाल चले जाते हैं। वैसे तो मंदिर परिसर में हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है पर नवरात्र में यह भीड़ और बढ़ जाती है। मन की मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु यहां चढ़ावा भी चढ़ाते हैं।हाथी भी बनवाते हैं।
उन्होंने बताया कि 20 जनवरी को माता बनैलिया का 33 वां स्थापना दिवस समारोह मनाया जाएगा जिसको लेकर अभी से तैयारी शुरू कर दी गई है। 20 जनवरी को मंदिर प्रांगण से एक भव्य शोभायात्रा यात्रा निकाली जाएगी जो पूरे नगर का भ्रमण कर वापस मंदिर परिसर में पहुंचेगी। यह शोभायात्रा इस बार ऐतिहासिक होगी। उन्होंने बताया कि मंदिर में पूजा- पूजा-पाठ का यह कार्यक्रम 22 जनवरी तक तीन दिनों तक चलेगा। जिसमें भजन- कीर्तन के अलावा तमाम कार्यक्रम होंगे। 21 जनवरी को भंडारे के कार्यक्रम के साथ देवी जागरण भी होगा। 22 जनवरी को अयोध्या में प्रभु श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर मंदिर प्रांगण में हनुमान जी की मूर्ति के सामने सुंदर काण्ड का भी कार्यक्रम होगा। उसी दिन शाम को पूरे मंदिर परिसर में भव्य दीपोत्सव की भी तैयारी है। उन्होंने कहा कि साढ़े पांच सौ वर्षों के बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या में अपने राजमहल में आ रहे इसलिए यहां के लोग बहुत ही उत्साहित और गौरवान्वित हैं। यही नहीं पड़ोसी मुल्क नेपाल के साथ-साथ पूरी दुनिया के लोग इस छंड़ को देखने के लिए बेहद उत्साहित और खुश हैं।
इस अवसर पर मंदिर के पुजारी जीतेन्द्र पांडे, पुजारी एम लाल, पुजारी सूर्य नारायण शास्त्री और विनोद शास्त्री मौजूद रहे।
प्रबंधक ऋषि राम थापा ने बताया कि जहां आज मंदिर है, वहां पहले जंगल था, यह थारू समाज की जमीन थी। घने जंगल को काटकर किसान केदारनाथ मिश्र खेती करते थे। एक दिन काम करते वह दिन में ही सो गए। उस समय उन्होंने स्वप्न में देखा। स्वप्न में देवी ने कहा कि जहां खेती करते हो वहां मैं निवास करती हूं। उस स्थान पर मंदिर बनवाओ मैं सबका कल्याण करूंगी। नींद खुलने के बाद घर गए वहां रात में सोए हुए थे। उन्होंने पुनः स्वप्न देखा। सुबह जागकर परिजनों व गांव के लोगों को पूरी कहानी बताई। वर्ष 1888 में उस स्थान पर एक छोटा सा मंदिर बनाया गया। जंगल होने के कारण उसका नाम वन देवी दुर्गा मंदिर के नाम से जाना जाता था। धीरे धीरे उसका नाम माता बनैलिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मंदिर के कब कौन पुजारी रहे
वर्ष 1938 में पुजारी रामप्यारे दास आए और 1946 तक पुजारी रहे। दूसरे पुजारी रामप्रीत दास 1946 से 1959 तक रहे। तीसरे पुजारी कमलनाथ 1959 से 1973 तक रहे। चौथे पुजारी महातम यादव 1973 से 1996 तक रहे। उसके बाद पुजारी काशी दास 1996 में आए और 9 वर्ष तक रहे। इन्हीं के देखरेख में पुराने मंदिर के जगह नए मंदिर व नई प्रतिमा का निर्माण हुआ।
हर वर्ष मनाया जाता स्थापना दिवस
20 जनवरी 1951 को नई मूर्ति स्थापित किया गया। तभी से मंदिर परिसर में वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। अब तक 32 वां वार्षिक उत्सव मनाया जा चुका है। वार्षिकोत्सव के दौरान समाज के हर वर्ग के लोगों का सहयोग मिलता है। हर वर्ष मंदिर परिसर से भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है।
अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी यहां किया था रात्रि विश्राम
मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव नेपाल के राजा विराट के वहां जाते समय यहां रात्रि विश्राम किए थे। इतिहास में इन तथ्यों का वर्णन आता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी माता बनैलिया मंदिर का विशेष महत्व है।