तस्करों की पहली पसंद भारत-नेपाल सीमा , ऐसे होती है भारत-नेपाल सीमा पर तस्करी

गैर-कानूनी कार्य करने वालों की कसी जाएगी नकेल – वैभव कुमार सिंह डिप्टी कमिश्नर कस्टम नौतनवां महराजगंज

मनोज कुमार त्रिपाठी
महराजगंज: भारत-नेपाल की खुली सीमा हमेशा से तस्करों की पहली पसंद रही है। इस सीमा से कभी डीजल-पेट्रोल, कभी खाद तो कभी स्क्रैप की बड़े पैमाने पर तस्करी की जाती है। इस समय इस सीमा पर चीनी, चावल, प्याज, मोटर पार्ट्स, कपड़ा तस्करों की बाढ़ आई हुई है। साइकिल और मोटरसाइकिल तो छोड़िए पिकअप गाड़ियों में भरकर भारत से नेपाल यह सामान आराम से नेपाल पहुंचा दी जा रही हैं। यहां पर पुलिस, एसएसबी और कस्टम के सिपाहियों के सामने ही तस्कर शान से फर्राटा भरते हुए तस्करी का माल नेपाल पहुंचा रहे हैं।

बता दें कि भारत-नेपाल के सरहद पर तस्करी के खुले खेल की यह तस्वीरें आपको हैरान जरूर कर रही होंगी, लेकिन यहां के लोगों के लिए यह रोजमर्रा की बात है। साइकिल, मोटरसाइकिल के साथ-साथ चार पहिया गाड़ियों में सामान लादकर यहां पर बड़े आराम से तस्कर भारत से नेपाल या नेपाल से भारत ला सकते हैं। अगर आप सुविधा शुल्क देने में सक्षम है तो यहां की सुरक्षा एजेंसियां हाथ बांधे आपका स्वागत करते हुए देखेंगे और आप बड़े आराम से सब कुछ गैर कानूनी ढंग से भारत से नेपाल या नेपाल से भारत ला सकते हैं।
तस्करी के धंधे का पूरे साल में अलग-अलग सीजन होता है। कभी डीजल-पेट्रोल, कभी खाद, कभी स्क्रैप तो कभी चीनी जी हां, वही चीनी… जो हम और आप चाय से लेकर खाने-पीने में प्रयोग करते हैं, लेकिन यही चीनी इस समय भारत-नेपाल के महराजगंज सीमा के तस्करों की जिंदगी में भरपूर मिठास घोल रही है। भारत-नेपाल सीमा के नोमेन्स लैंड से सटा एक छोटा सा गांव है लक्ष्मीपुर खुर्द है।इस गांव की आबादी लगभग 5000 है। गांव में छोटा सा बाजार भी है, जहां पर 10 से 12 किरानें की दुकानें हैं, लेकिन यहां पर आने वाले चीनी की मात्रा सुनकर आप चौक जाएंगे। इस छोटे से गांव में हर रोज 900 से 1200 क्विंटल चीनी लाई जाती है। हर रोज यहां पर 30 से 40 पिकअप गाड़ियां चीनी भरकर पहुंचती हैं। एक गाड़ी में 30 क्विंटल चीनी होता है और दिन भर के अगर हम 35 गाड़ी का ही मानकर चलें तो यहां पर लगभग 1000 क्विंटल चीनी इस गांव में आती है। हर रोज पिकअप गाड़ियों का रेला यहां पर आपको दिखाई दे जाएगा, जो इसका विरोध करने की कोशिश करता है उसे तस्कर धमकी भी देते रहते हैं।
नेपाल में महंगी चीनी होने के कारण तस्कर यहां से चीनी की बड़े पैमाने पर तस्करी कर रहे हैं। नो मैंस लैंड से सटे इस गांव में सड़कें ऐसी हैं कि आप सीधे दोपहिया और चार पहिया दोनों से भारत से नेपाल कुछ भी लेकर जा सकते हैं। गांव के अधिकतर घरों के अंदर लोगों ने बड़े-बड़े गोदाम बना रखे हैं, जहां पर पहले सामानों को स्टोर किया जाता है और फिर कैरियरों के माध्यम से इसे नेपाल पहुंचा दिया जाता है। इस गांव के लोग तस्करी के काम में इतने रम चुके हैं कि इन्हें यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं कि गांव के लोग तस्करी के धंधे से जुड़े हुए हैं। हालांकि, तस्करी के इस समुद्र के मगरमच्छ वो सफेदपोश है जो अपने रुपये लगाकर प्रतिबंधित सामानों को खरीदते हैं और यहां के लोगों को कैरियर बनाकर उनसे तस्करी कराते हैं।
अगर आपको भारत से नेपाल या नेपाल से भारत आना हो तो मुख्य रास्तों पर तो इतनी सघन चेकिंग आपको देखने को मिलेगी कि मानो सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह से मुस्तैद हों लेकिन लक्ष्मीपुर खुर्द गांव से आप भारतीय नंबर की मोटरसाइकिल से कुछ भी लादकर नेपाल जा सकते हैं। इस गांव में दुकान चलाने वाले लोग यह मानते हैं कि नेपाल में जिस चीज की किल्लत होती है या फिर जो चीज भारत में प्रतिबंधित होती है वह इस बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। यहां के लोग खुलकर स्वीकार करते हैं कि तस्करी का इस पूरे इलाके में सबसे बड़ा अड्डा यही गांव है।
इस समय भारत से नेपाल चीनी की तस्करी क्यों हो रही है? इसके पीछे की वजह भी हम आपको बता रहे हैं। 24 मई 2022 को भारत सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी कर 1 जून से 31 अक्टूबर 2022 तक भारत से नेपाल निर्यात होने वाले चीनी पर रोक लगा दी है। देश में चीनी की भरपूर उपलब्धता होने और चीनी के दाम स्थिर रखने के लिए भारत सरकार ने यह फैसला लिया था, लेकिन सरकार का यह फैसला तस्करों के लिए मुनाफे का सौदा हो गया।
भारतीय बाजार में जहां चीनी का दाम 35 से 40 रुपये किलो है तो वहीं तस्करी के जरिए यही चीनी जब नेपाल के बाजार में पहुंचती है तो इसका दाम 65 से 70 रुपये हो जाता है। दाम में दोगुने का अंतर होने की वजह से चीनी तस्करों के लिए इस समय यह सबसे बड़ा फायदे का सौदा दिखाई दे रहा है। चीनी के साथ खाद भी इस समय बड़े पैमाने पर नेपाल भेजी जा रही है। खाद की हर बोरी में दोगुना मुनाफा मिलने की वजह से गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी इस धंधे में जुट गए हैं।
महाराजगंज के नेपाल से सटे ठूठीबारी, इटहिया, लक्ष्मीपुर, शितलापुर, बरगदवा, भगवानपुर, परसा मलिक, श्यामकाट, सोनौली,फरेंदी तिवारी,शेष फरेंदा, हर्दी डाली खनुआ, सुंडी,बैरिहवा, पहाड़ी टोला, नौतनवां गैस एजेंसी के बगल का रास्ता, मुड़िला, चंडीथान, बाबू पैसिया,बैरिया, कुरहवा खुर्द, संपतिहा पुलिस चौकी से सटे रास्ता, जोगियाबारी, खैराघाट जैसे दर्जनों ऐसे गांव हैं जहां पर तस्करी के काम में हजारों लोग लगे हुए हैं।
महाराजगंज जिले की खुली सीमा की अगर बात करें तो लगभग 84 किलोमीटर की सीमा नेपाल से जुड़ती है जहां पर सुरक्षा के लिए एसएसबी के साथ-साथ पुलिस और कस्टम की भी बड़ी तैनाती की गई है, बावजूद इसके तस्करी का यह धंधा पिछले कई दशकों से अगर बिना किसी रोकटोक के चल रहा है तो इसके पीछे की बड़ी वजह नीचे से ऊपर तक कमीशन की वह रेवड़ी है जो सब में मुंह मांगे के तरीके से बांटी जाती है। इस वजह से कोई भी तस्करी के धंधे पर पूरी तरह से रोक लगाने की जहमत नहीं उठाता। देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है तो होता रहे, नेपाल से भारत बड़े पैमाने पर चरस हो या सोना या नेपाल निर्मित कास्मेटिक सामान आता है तो आते रहे यहां के सुरक्षाकर्मियों को बस अपने उस कमीशन से मतलब है जो तस्करों को संरक्षण देकर इन्हें मिल जाता है।
इस संबंध में डिप्टी कमिश्नर कस्टम नौतनवां ने कहा कि सीमा पर तस्करी की सूचना मिलती रहती है। तस्करी के सामान पकड़े भी जा रहे हैं।एसएसबी, पुलिस और कस्टम से समन्वय स्थापित कर तस्करी पर रोक लगाई जाएगी। तस्करों द्वारा सुरक्षा एजेंसियों, कस्टम , पुलिस और एसएसबी की मिली भगत का जो भी आरोप लगाया जा रहा है वह पूरी तरह निराधार है। गैर कानूनी कार्य करने वाले लोगों की हर-हाल में नकेल कसी जाएगी।