अंतरराष्ट्रीय

चीन के दांव में नहीं फंस रहा है नेपाल, मांग ली भारत जैसी मदद

नेपाल का सबसे बड़ा मददगार है भारत

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

नई दिल्ली: चीन के बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव बीआरआई परियोजना का अब नेपाल में भी भरपूर विरोध हो रहा है। दरअसल, चीन नेपाल को अपने कर्ज के जाल में फंसाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन नेपाल ने ड्रैगन से भारत जैसी मदद की मांग कर रहा है। दरअसल, पिछले हफ्ते पर्यटन स्थल पोखरा में नया हवाई अड्डा बनाया गया, जिसके लिए चीन ने पैसा दिया था था। ड्रैगन ने दावा किया था कि यह एयरपोर्ट नेपाल में बीआरआई का हिस्सा है। चीन की इस हरकत पर वहां के स्थानीय लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। गौरतलब है कि भारत चीन की इस परियोजना का शुरू से विरोध करता रहा है। इस बार के बजट में नरेंद्र मोदी सरकार ने मध्य पूर्व को जोड़ने के लिए एक बड़े गलियारे का ऐलान किया था। इसका नाम भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर है। इस परियोजना की लॉन्चिंग भारत में पिछले साल हुए जी-20 बैठक में की गई थी।

भारत के पड़ोसियों पर क्यों डोरे डाल रहा है चीन?

पिछले हफ्ते, राष्ट्रीय एकता अभियान के तहत पोखरा में एक जागरूकता रैली का आयोजन किया,जिसमें बीआरआई को लेकर नेपाल के लिए इसके संभावित खतरों को लेकर चिंता जताई गई थी। विरोध का मुख्य केंद्र पोखरा अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा था। विरोध के दौरान आरोप लगाया गया कि इसके पीछे चीन की कोई छिपी चाल हो सकती है। हो सकता है ड्रैगन पोखरा इलाके में चीनी सेना को तैनात करना चाहती हो। इसके लिए वह पोखरा एयरपोर्ट को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का दांव भी चल सकता है। गौरतलब है कि चीन भारत के हर उस पड़ोसी देशों पर डोरे डाल रहा है। जो बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। हालांकि भारत और नेपाल के आपसी संबंध काफी अच्छे और गहरे हैं। ऐसे में चीन भारत के पड़ोसी देशों को अलग-अलग तरीकों से लुभाने की कोशिश में जुटा है।

चीन चल रहा है नेपाल में चाल!

पोखरा हवाईअड्डा सीधे तौर पर चीन के बीआरआई का हिस्सा नहीं था, पर कुछ बातें गौर करने लायक हैं। इस एयरपोर्ट के लिए ज्यादातर पैसा चीन के बैंकों से ही आया था। एयरपोर्ट को बनाने का काम भी एक चीनी कंपनी ने ही किया था। भले ही नेपाल सरकार को इस बारे में थोड़ी शंका थी, पर चीन लगातार यही कहता रहा कि यह प्रोजेक्ट बीआरआई‌ का ही हिस्सा है।

चीन के जाल में नहीं फंसेगा नेपाल

चीन का बीआरआई प्रोजेक्ट नेपाल में शुरू ही नहीं हो पाया है। हालांकि, 2017 में नेपाल और चीन ने इस पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन करीब सात साल बीत जाने के बाद भी इसका कोई भी प्रोजेक्ट न तो शुरू हुआ है और न ही इस पर बातचीत ही हुई है। नेपाल के जानकारों का कहना है कि श्रीलंका और पाकिस्तान की तरह नेपाल की सरकारें बीजिंग से कर्ज लेने से हिचकिचा रही हैं, जिस वजह से बीआरआई प्रोजेक्ट्स आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

नेपाल को सता रहा है श्रीलंका वाला डर!

नेपाल सरकार चीन की चाल से बेहद सतर्क है। नेपाल सरकार चीन से अनुदान लेने को तो तैयार है लेकिन उसका कर्ज नहीं लेना चाह रही है। दरअसल, चीन ऊंचे ब्याज पर कर्ज देता है। श्रीलंका चीन के कर्ज के जाल में फंस चुका है। श्रीलंका की मदद के लिए खुद भारत आगे आया है। जाहिर है नेपाल भी श्रीलंका के हाल को देखते हुए चीनी कर्ज में नहीं फंसना चाहता है। सूत्रों का कहना है कि 2020 की शुरुआत से ही नेपाल और चीन के बीच बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर करना एक प्रमुख मुद्दा रहा है, लेकिन निवेश की शर्तों को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद होने के कारण अभी तक कोई समझौता नहीं हो पाया है।

नेपाल का सबसे बड़ा मददगार है भारत

नेपाल, एशिया के कई अन्य देशों की तुलना में चीन का बहुत कम कर्जदार है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नेपाल हमेशा से कर्ज लेने में सावधानी बरतता रहा है और अनुदान सहायता चाहता रहा है। भारत 1950 के दशक से ही नेपाल को उदारतापूर्वक मदद प्रदान करता रहा है। नेपाल भारत के सबसे बड़े और सबसे प्रमुख विकास साझेदारों में से एक है। नेपाल में आधुनिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भारत-नेपाल सहयोग 1951 में शुरू हुआ था।

भारत-नेपाल का 7 दशक पुराना रिश्ता

भारत ने नेपाल में बुनियादी ढांचे के विकास के अलावा शिक्षा,स्वास्थ्य,पुरातत्व, सिंचाई,बिजली,बागवानी, उद्योग विकास और व्यापार संवर्धन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी ज्ञान भी साझा किया है। इससे नेपाल के सामाजिक और आर्थिक विकास में काफी योगदान मिला है। भारत-नेपाल विकास साझेदारी सात दशक से भी अधिक समय से जारी है और इसका लगातार विस्तार भी होता जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}