उत्तर प्रदेशमहराजगंज

भैरहवा में ओम् शांति संस्था द्वारा स्कूली बच्चों को दिया गया नौ दिवसीय प्रशिक्षण

माता-पिता,शिक्षक,समाज और देश के प्रति सचेत होना ही बच्चों का कर्तव्य- शांति दीदी ब्रह्म कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्रमुख भैरहवा

मनोज कुमार त्रिपाठी

भैरहवा नेपाल/महराजगंज: भारतीय सीमा से सटे नेपाल के रूपंदेही जिले के भैरहवा कस्बे में स्थित ओम शांति कार्यालय में स्कूली बच्चों को अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रहने के लिए नौ दिनों तक प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में बताते हुए ब्रह्म कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्रमुख शांति दीदी ने कहा कि आज के बच्चे अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत नहीं हैं। बच्चों को नैतिक शिक्षा देकर उन्हें जागृत करने के लिए ही यह नौ दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बच्चों को अभी तक यह नहीं पता है कि हमारा जन्म किस लिए हुआ है हम किस लिए शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। माता-पिता,देश,समाज और
शिक्षक के प्रति मेरा कर्तव्य क्या है इसी को लेकर यह प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि हमारा जीवन विविध चरणों से होकर गुजरता हैं हम अपने जन्म से लेकर बाल्यावस्था, फिर स्कूली जीवन तथा युवावस्था से जीवन के अंतिम दौर वृद्धावस्था से होते हुए जीवन के सफर को पूर्ण कर जाते हैं। जीवन से मृत्यु तक के इस सफर में हम विविध अच्छे बुरे अनुभवों से होकर गुजरते हैं।

जीवन को यदि हम कोई अन्य नाम दे तो वह उत्तरदायित्वों एवं कर्तव्यों की अनवरत श्रंखला है, व्यक्ति जिसे पूर्ण करने की जद्दोजहद में सदैव लगा रहता हैं। वह अपने प्रयत्नों से परिवार, समाज तथा देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण कर लेता हैं। मगर अपने माता-पिता के प्रति उत्तरदायित्वों को चुकाने के लिए एक जीवन भी कम पड़ जाता हैं।

एक संतान को मां बाप द्वारा जन्म देने के साथ ही उसे प्रेम, सुरक्षा,पालन पोषण, शिक्षा और संस्कारों के रूप में कई अमूल्य योगदान हमारे जीवन में होते हैं।

बच्चे की मां अपने स्नेह से तथा पिता जीवन में अनुशासन के भाव को जागृत करते हैं। चरित्र एवं व्यक्तित्व निर्माण का सम्पूर्ण श्रेय माता पिता को ही जाता हैं। बालक उनके अनुकरण अथवा निर्देश के मुताबिक ही स्वयं को ढालता हैं। माता-पिता को देवता के समान पूजनीय माना गया हैं। एक सन्तान के लिए ईश्वर का स्वरूप होते हैं। बताया जाता है कि 84 लाख जन्मों के बाद मानव जन्म नसीब होता हैं। इतना अमूल्य जीवन हमें अपने माता-पिता के द्वारा ही मिलता हैं। एक बच्चें के जन्म से युवा होने तक मां बाप को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, इसका सही अनुमान और एहसास तभी होता हैं जब आप स्वयं मां बाप बनेंगे।

मगर आज के समय में वृद्ध मां बाप की हो रही दुर्दशा देखकर यही कहा जा सकता हैं, कि अधिकतर बच्चें अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यों से विमुख होते जा रहे हैं। उन्हें यह समझना चाहिए संसार में हमारी जो भी स्थिति और हैसियत है वह मां बाप की बदौलत ही हैं। यह जीवन उनका है हर क्षण उन्हीं के शरणों में समर्पित होना चाहिए।

एक मां नौ माह तक अपने बेटे बेटी को गर्भ में रखने के बाद अपार दर्द सहकर भी उसे जन्म देती हैं। इसके बाद अपने लाड़ दुलार के साथ पालन-पोषण कर स्वयं के पैरो पर खड़ा होने योग्य बनाती हैं। माता-पिता का स्नेह ही बालक को बौद्धिक एवं मानसिक रूप से सशक्त बनाता हैं। वहीं जिन बच्चों को माता-पिता का प्रेम नहीं नसीब होता हैं उनमें बालपन से ही असुरक्षा और डर के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। वे जन्म से बड़े होने तक हमारी सैकड़ों गलतियों और शरारतों को यूं ही क्षमा कर देते हैं। कई बार गलत राह पर जाने के कारण उनकी डांट फटकार में भी हमारा हित निहित होता हैं।वे हमें बुरी राह से निकालकर सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। बच्चे को जीवन में अनुशासन में रहने, अच्छे लोगों की संगत करने के पीछे पिता का हाथ होता है।

कोई लड़का बड़ा होकर वैज्ञानिक, व्यवसायी या किसी बड़े पद को प्राप्त करता हैं तो उसकी इस मंजिल को पाने में जितनी मेहनत स्वय से लगाई उससे कहीं अधिक योगदान माता-पिता का रहा हैं।
मां बाप का त्याग और उनके जीवन भर की पूंजी केवल अपनी संतान का भला हो उसी में अर्पण कर दी जाती है। व्यक्ति बड़ा होकर समाज में सम्मानित स्थान प्राप्त करेगा जब उसे अपने परिवार में अच्छी सीख और प्रेरणा मिली हो।

प्यारे बच्चों हम सभी का यह प्रथम कर्तव्य हैं कि जीवन में चाहे हम कितने भी बड़े व्यक्ति बन जाए मगर अपने मां-बाप,
देश,समाज और शिक्षक को कभी नहीं भूलना चाहिए। उनकी तपस्या, लगन और बलिदान को कभी नीचा मत दिखाना।

आज यदि हम खुशी से जीवन बिता रहे है तो इसके पीछे हमारे पेरेंट्स के सालों की खुशियों का अर्पण हैं। जिन्होंने अपने सुख की परवाह किये बगैर आपके लिए कुछ करने की चाहत में अपने वर्तमान के सुख की बलि सहर्ष दे दी। हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने माता-पिता का सदैव सम्मान करें। कोई भी मां-बाप अधिक धन दौलत, बड़े बंगले, गाड़ी आदि की ख्वाइश नहीं रखता है। वे हमसे सम्मान की अपेक्षा रखते हैं। उनकी इच्छा होती है कि हम कोई अच्छा काम करें जिससे वे गर्व से जी सके। सन्तान के रूप में प्रत्येक बच्चे का यह कर्तव्य है कि अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने में स्वयं को अर्पित कर दे। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमारे किसी कर्म से मां-बाप को कभी शर्मिंदगी महसूस न करनी पड़े । यदि आज हम अपने चारों ओर के परिदृश्य को देखें तो भारतीय संस्कारों का नामोनिशान कहीं नहीं दिखता है। हमारी युवा पीढ़ी अधिक से अधिक भौतिक सुख और निजी लिप्साओं में लगे हैं।

अपने माता-पिता से अलगाव के जीवन में वे जिस अपसंस्कृति का बीज बो रहे हैं उन्हें भी एक दिन पेरेंट्स बनना है फिर किस मुंह से वे अपने बेटों से कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की बात करेंगे। बच्चों हमें अपने जीवन की प्रत्येक सांस तक अपने माता- पिता,देश,समाज और शिक्षक के प्रति जो कर्तव्य हैं उन्हें पूर्ण करना चाहिए, जब उनका शरीर बुढ़ापे की तरफ अग्रसर हो तो हमें उनकी लाठी बनकर सेवा और सम्मान के साथ उन्हें खुशहाल जिन्दगी बिताने के अवसर देने चाहिए। हमारे धर्मग्रंथों में भी मातृ-पितृ सेवा से बढकर कोई पुण्य नहीं है। जो सन्तान माता-पिता की सेवा कर उनके आशीर्वाद से संतुष्टि पाते हैं उनके लिए यह स्वर्ग के कल्पित सुखों से भी बढकर है। मातृदेवो भव, पितृ देवो भव की हमारी पुरातन संस्कृति और उसके संस्कारों पर फिर से अमल करने की आवश्यकता है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में काशी नोबेल एकेडमी भैरहवा और मून लाइट सेकेंडरी इंग्लिश बोर्डिंग स्कूल भैरहवा के छात्र- छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर काशी नोबेल एकेडमी के प्राचार्य घिमिरे, मून लाइट इंग्लिश बोर्डिंग स्कूल के प्राचार्य राजेश राज जोशी,प्रतिमा न्योपाने,सीता पौड़ेल,बाल किशुन कुर्मी और बीके भूपेन्द्र जी मौजूद रहे। प्रशिक्षण कार्यक्रम में बहुत से बच्चे इतने भाऊक हो गये कि उसके आंखों से आंसू निकलने लगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}