उत्तर प्रदेशमहराजगंज

अपने 125 साल के राजनीतिक जीवन में अंतिम सांसें गिन रही है कांग्रेस

भाजपा से मुकाबला करने में फुस्स लग रहा है इंडिया गठबंधन ?

बिहार और यूपी में कांग्रेस को मिली सिर्फ 26 सीट

गठबंधन के सहयोगियों से खूब ब्लैकमेल हुई कांग्रेस

हर्षोदय टाइम्स ब्यूरो महराजगंज

महराजगंज:   इस बार के लोकसभा चुनाव में यह देखने को मिला कि इंडिया एलायंस में बड़ी पार्टी होते हुए भी कांग्रेस कितनी असहाय है। उसे पंजाब सहित चार बड़े प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों के समक्ष नतमस्तक होना पड़ा। पंजाब में दस सीटों पर कांग्रेस के सांसद होते हुए भी आम आदमी पार्टी उसे एक भी सीट देने को तैयार नहीं हुई लिहाजा यहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच फ्रेंडली फाइट का फार्मूला तय करना पड़ा।

महाराष्ट्र में सांगली सीट सहित कुछ अन्य सीटों पर खींच तान जारी है। महाराष्ट्र की सांगली सीट बसंत दादा पाटिल के जमाने से कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। इस एक सीट के लिए कांग्रेस को उद्धव ठाकरे की शिवसेना से गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। इस सीट के कांग्रेस को मिलने में फिलहाल कम संभावना है। कांग्रेस की गठबंधन में जो स्थिति है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उसके सहयोगी दल कांग्रेस को ब्लैकमेल करने में कामयाब हो रहे हैं और कांग्रेस खूब ब्लैकमेल भी हो रही है। गठबंधन के क्षेत्रीय दल दर असल केंद्र की सत्ता से बेदखल करने की कांग्रेस की पुरजोर कोशिश का बेजा फायदा उठा रहे हैं।

बंगाल में ममता बनर्जी से गठबंधन टूटने की मुख्य वजह भी यही रही है। ममता बनर्जी केंद्र के खिलाफ जितना बोलतीं हैं उतनी वे उसके खिलाफ हैं नहीं। आखिर वे भी तो कभी एनडीए का हिस्सा रह चुकी हैं। उनके भतीजे के ईडी की जद में आने के बाद भाजपा के खिलाफ उनके सुर में बदलाव भी आया है। कांग्रेस पूरी कोशिश में थी कि ममता के साथ गठबंधन बना रहे लेकिन ममता बनर्जी ने सीटों के बंटवारे की ऐसी जिद की कि गठबंधन टूट गया। अब आइए उत्तर प्रदेश और बिहार में। इन दो प्रदेशों में मिला कर कुल 120 सीटें आती है। कितना अचरज है कि इन 120 सीटों में से कांग्रेस मात्र 25 सीटों पर चुनाव लड़ने को मजबूर है।

यूपी और बिहार के दोनों यादव परिवार कांग्रेस को सबसे निचले पायदान पर लाकर खड़ा कर दिए। यूपी में गठबंधन में जब जयंत चौधरी थे तब कांग्रेस को 17 सीटें देने की बात थी। अब जयंत चौधरी ही नहीं पल्लवी पटेल ने भी साथ छोड़ दिया फिर कांग्रेस को 17 सीटें ही दी जा रही। यूपी में मुस्लिम मतदाताओं का रुख देखकर कांग्रेस इनके प्रभाव वाले 25 सीटों में से कम से कम दस सीट चाह रही थी लेकिन उसे मिला सिर्फ दो अमरोहा और सहारनपुर। यहां भी कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों के खिलाफ बसपा ने भी मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर इनके समक्ष मुश्किल खड़ी कर दी है। जो 67 सीटें सपा ने अपने लिए ली है, पक्का है कि इनके पास भी उतने उम्मीदवार नहीं है लेकिन कांग्रेस को नीचा दिखाने के लिए अखिलेश यादव ने भारी भरकम सीटें हथिया ली। अभी मुरादाबाद और रामपुर में सपा उम्मीदवारों में सिरफुटव्वल का दृश्य सामने आया है।

गठबंधन को लेकर बिहार की स्थिति देखने में जितनी अच्छी लग रही थी, उतनी है नहीं। वहां राजद का एक भी एमपी नहीं है जबकि कांग्रेस के पास एक एमपी है फिर भी 40 सीटों में से उसे सिर्फ नौ सीट ही दी जा रही है। कांग्रेस मात्र दस सीट की ही मांग कर रही है जिसमें पूर्णिया और किशनगंज भी है। इन सीटों को देने को कौन कहे राजद ने यहां अपने उम्मीदवार तक खड़े कर दिए। कांग्रेस बिहार में अपने तीन खास उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाना चाह रही है। इसमें पूर्णिया से पप्पू यादव, किशनगंज से तारिक अनवर तथा बेगूसराय से कन्हैया कुमार के नाम शामिल है। राजद ने जिस तरह इन सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं उस हिसाब से कांग्रेस के इन तीन खास उम्मीदवारों के लिए स्पेश ही नहीं बचा। ऐसी सूरत में एक ही रास्ता बचता है, या तो गठबंधन टूट जाय या फिर पंजाब की तरह सभी या कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट हो।

बिहार में लालू यादव का फार्मूला समझ में नहीं आ रहा। आखिर विधानसभा में कांग्रेस सरकार का तो दावा करती नहीं, वह राजद की सरकार का पुरजोर समर्थक दल है फिर भी यदि राजद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सम्मान जनक सीटें नहीं देना चाहती तो क्यों न यह माना जाए कि उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी यादव परिवार कांग्रेस के साथ खेल कर रहा है। गठबंधन धर्म का यदि सुचिता पूर्वक निर्वहन नहीं किया गया तो माना जाना चाहिए कि भाजपा से मुकाबला करने में यह गठबंधन फुस्स है।

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