उत्तर प्रदेश

1951 के बाद सबसे कम सीटों पर लड़ने को मजबूर कांग्रेस, आखिर उसकी रणनीति क्या है, यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है!

कहीं ऐसा तो नहीं कि साल 2009 के बाद संगठन में बड़े पैमाने पर बिखराव इसका प्रमुख कारण हो?

उमेश चन्द्र त्रिपाठी ब्यूरो

महराजगंज! साल 1951 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आखिर सबसे कम सीटों पर लड़ने के लिए किन कारणों से मजबूर हुई है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि साल 2009 के बाद संगठन में बड़े पैमाने पर बिखराव इसका प्रमुख कारण हो। यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है?

बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में आखिरी बार कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। उस चुनाव में कांग्रेस ने 440 उम्मीदवार खड़े किए थे। इनमें से 209 सीटों पर उसे जीत मिली थी

उसका यह प्रदर्शन लोकसभा में बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े से काफी कम था। इसलिए संयुक्त जनतांत्रिक गठबंधन (यूपीए) की सरकार दोबारा बनी।

इससे पहले 2004 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 145 सीटें ही मिलीं थीं, जबकि उसने 417 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 529 सीटों पर चुनाव 1996 में लड़ा था। साल 1984 में कांग्रेस 497 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 404 सीटें जीत कर एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया था। इसी रिकार्ड को तोड़ने के लिए इस बार भाजपा जी-तोड़ मेहनत कर रही है। भाजपा को यह कामयाबी मिलेगी या नहीं यह तो 4 जून 2024 को तब तय होगा जब चुनाव का पूरा रिजल्ट घोषित हो जाएगा परंतु भाजपा डंके की चोट पर दावा कर ही कि इस पार भाजपा 400 पार जाएगी।

18 वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव के पहले चरण में 102 सीटों पर मतदान बीते शुक्रवार 19 अप्रैल को हो चुका है। इस बार कांग्रेस इंडिया गठबंधन का हिस्सा है।

कांग्रेस अब तक 301 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी है और उसके 300 से 320 सीटों पर ही चुनाव लड़ने की संभावना है। यह 1951 से लेकर अब तक के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि कांग्रेस इतनी कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

कांग्रेस ने 2014 के चुनाव में 464 उम्मीदवार उतारे थे, वहीं 2019 के चुनाव में उसने 421 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। साल 2019 में उसे 421 सीटों में से केवल 52 पर ही जीत मिली थी।

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