बाढ़ जैसी विभीषिका उत्पन्न होने का जिम्मेदार कौन ?

महराजगंज। आपको याद होगा कि आज के तीस या चालीस वर्ष पूर्व उत्तर भारत के सभी छोटे -बड़े शहरों या गांवों में कुएं, तालाब और जल निकासी के लिए नालियाँ हुआ करते थे । जो आज भी कुछ अंश तक हैं किन्तु अपनी पूर्व अवस्था में नहीं हैं ।
वर्षा का जल गाँव के आस पास के तालाबों में प्रवाहित हो जाता था । कुछ वर्षा का जल कुओं के जरिए भूमिगत हो जाता था जिससे जलस्तर भी वर्ष भर संतुलित रहता था । अवशेष जल खेतों के रास्ते प्रवाहित होकर नदियों नालों में समाहित हो जाता था । कमोवेश यही हालत शहरों का भी था । वर्षा के समय वर्षा का जल शहर के बड़े तालाबों या नदियों में प्रवाहित हो जाता था । इन उपायों से गॉव और शहर आज की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित थे ।
समय बदला परिस्थितियां बदलीं और लोगों का सोंच भी परिवर्तित होने लगा । अर्थात् जिन बड़ी नदियों का हम देवी के रूप में पूजा करते थे आज वही नदियाँ शहरों की कूड़ा कचरे एवं कल कारखानों के अपशिष्ट प्रवाह का साधन बन गयीं । जिससे जल का प्रवाह अवरुद्ध होने लगा और नदियों का जल प्रदूषित तो हुआ ही , साथ ही जल जमाव का संकट भी उत्पन्न हो गया । फलस्वरूप भारत के अधिकांश शहर बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं ।
वही हाल आज कल गाँवों भी अन्य रूपों में देखा जा सकता है । गाँवों में जो छोटे या बड़े तालाब थे उनमें से तो कुछ अस्तित्व में ही नहीं रहे और कुछ तालाब अतिक्रमण की भेंट चढ़ गये । जिससे वर्षा का अतिरिक्त जल जो कभी तालाबों में प्रवाहित होता था आज गाँवों में जल जमाव की स्थिति उत्पन्न करता है । जो कुँएं कभी जल स्तर को बनाये रखने का काम करते थे आज मृतप्राय हो चुके हैं अर्थात् कुछ कुँएं तो लोगों द्वारा पाट दिये गये या बचे हुए कुओं को ढक दिया गया । जिससे वर्षा का जल उसमें संचय होने के बजाय गॉवों में ही सड़कों पर जमा होते देखा जाता है । रही बात नालियों की चाहे वह शहरों की हों या गॉवों की , अच्छी और आधुनिक तो बनायी गयीं किन्तु उनके रास्ते होकर जल का प्रवाह प्रबंधन नहीं किया जा सका । फलस्वरूप सभी नालियां लोगों द्वारा कूड़ेकचरे के ढेर में तब्दील हो गयीं और जलप्रवाह का मार्ग अवरुद्ध हो गया ।
आज स्थिति यह है कि चारों तरफ बाढ़ जैसी व्यापक स्थिति बन गयी है । खेतों में फसलें पूर्णतः जलमग्न हो चुकी हैं । जो हरे भरे खेत थे वे अब ताल या नदी जैसे दृश्य में परिणीत हो चुके हैं ।
अगर गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाय तो इसके पूरे जिम्मेदार हम मानव ही हैं । सिर्फ प्रकृति के ऊपर जिम्मेदारी ढालकर पल्ला झाड़ लेने से कुछ होने वाला नहीं है । ग्लोबल वार्मिंग का पूर्ण प्रभाव तो दिख ही रहा है परन्तु वर्षा जल का उचित प्रबंधन नहीं कर पाना भी सबसे बड़ा कारण परिलक्षित होता है । हो सकता है कुछ लोग मेरी बातों से सहमत नहीं हों किन्तु अधिकांश लोग सहमत होने की स्थिति में अवश्य होंगे । खास तौर से वे लोग जो तीस चालीस वर्ष के पूर्व की स्थिति से परिचित होंगे ।
अतः अब वक्त की नजाकत को समझते हुए हमें इस पर विचार मंथन करना होगा । उचित जल प्रबंधन एवं प्रवाह दोनों में संतुलन स्थापित करना होगा । जल प्रवाह को अवरुद्ध होने से बचाना होगा और नदी नालों को साफ सुथरा एवं प्रवाहपूर्ण बनाना होगा । इसके लिए स्वायत्त सेवी संस्थाओं, सरकारी अधिकारियों,समाजसेवियों, जन प्रतिनिधियों एवं खुद सरकार को भी एक साथ मिलकर इस दिशा में दृढ़तापूर्वक कार्य करना होगा ताकि आने वाले दिनों में फसलों को बचाया जा सके जिससे खाद्यान्न संकट की स्थिति नहीं उत्पन्न होने पाये ।
साथ ही सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा भी हो सके । समाज का भी महत्वपूर्ण योगदान होने पर ही सकारात्मक एवं अपेक्षित परिणाम मिलना सम्भव होगा ।
– रवीन्द्र शर्मा (शिक्षक) नगर पंचायत – परतावल, जनपद – महराजगंज, उ०प्र० ।