अखिलेश यादव ने एक बार फिर खेला ब्राह्मण कार्ड
माता प्रसाद पाण्डेय को बनाया नेता प्रतिपक्ष
कहीं 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से तो नहीं बनाई जा रही है रणनीति?
उमेश चन्द्र त्रिपाठी
लखनऊ/ सिद्धार्थ नगर /महराजगंज! समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने बड़ा दांव चला है। यूपी में नेता प्रतिपक्ष काे लेकर लंबे समय से चल रहे कयास को लेकर रविवार को स्थित स्पष्ट हो गई।
अखिलेश यादव ने विपक्ष के नेता के तौर पर ब्राह्मण चेहरे को चुनकर सबको चौंका दिया है। राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि अखिलेश के इस कदम से सरगर्मियां बढ़ गई हैं और यूपी की राजनीति में सपा को मजबूती मिलेगी।
हालांकि, इससे पहले पीडीए के चेहरे को लेकर चर्चा चल रही थी। वरिष्ठ सपा नेता शिवपाल यादव, केराकत विधायक और पूर्व सांसद तूफानी सरोज और इंद्रजीत सरोज के नामों पर चर्चा चल रही थी। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों से बातचीत के बाद अखिलेश यादव ने चौंकाने वाला फैसला लिया है।
आखिर कौन है माता प्रसाद पाण्डेय?
समाजवादी पार्टी के नेताओं का कहना है कि माता प्रसाद पाण्डेय समाजवादी पार्टी में काफी पुराने नेता हैं। कई बार जातिगत विवादों को लेकर समाजवादी पार्टी के नेताओं पर सवाल उठे, इसके बावजूद माता प्रसाद पाण्डेय समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे।
इसके अलावा माता प्रसाद पाण्डेय काफी पुराने नेता हैं और दो बार विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं, इसके अलावा उन्हें विधानसभा चलाने का लंबा अनुभव है। ऐसे में अखिलेश यादव द्वारा माता प्रसाद पाण्डेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर बड़ा दांव चला गया है।
सात बार रहे हैं विधायक
इसके अलावा अगर माता प्रसाद पाण्डेय के राजनीतिक कैरियर की बात करें तो माता प्रसाद पाण्डेय सिद्धार्थनगर के इटवा विधानसभा से सात बार विधायक रह चुके हैं।
उन्होंने अपना पहला चुनाव वर्ष 1980 में लड़ा था, जिसके बाद वे कई बार चुनाव जीते लेकिन 1996 में चुनाव हार गए। उसके बाद वे 2002, 2007 और 2012 में विधायक बने लेकिन 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
ऐसे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव ने विधानसभा 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान पीडीए का नारा बुलंद किया था और इसका लाभ भी अखिलेश यादव को मिला था।
इन सब के बावजूद नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पाण्डेय का चयन करके एक बड़ा दांव चला है। कहा यह भी जा रहा है कि 2027 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अब ब्राह्मण वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए अखिलेश यादव ने यह कदम उठाया है।