Uncategorizedमहराजगंजराजनीति

आपसी अंतर्कलह और नेताओं की बदजुबानी से विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारी कांग्रेस?

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को भी जनता ने पूरी तरह से दिया नकार

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स) : कांग्रेस में तमाम ऐसे महारथी मौजूद हैं जिनकी वजह से उसे चुनावों में पराजय का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेशों में कांग्रेस के जो भी महारथी हैं, सबके सब राहुल और प्रियंका के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की मंशा पाले हुए हैं। ऐसा हो भी सकता है वशर्ते वे कुछ नहीं कर सकते तो अपनी जुबान ही बंद रखें लेकिन वे ऐसा भी नहीं कर सकते। बोलेंगे तो ऐसा कि सामने वाला फायदा उठा ले। मध्यप्रदेश में सीएम पद के दावेदार रहे कमलनाथ के कारनामे से सभी अवगत हैं, वहां के प्रभारी जनाब रनदीप सिंह सुरजेवाला ने तो चुनाव चढ़ते ही वहां की जनता को राक्षस तक कह दिया था। आखिर भाषा और वाणी का भी तो असर चुनाव में पड़ता है। निश्चित ही मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ कुछ ऐसा भी हुआ होगा

कांग्रेस के जयराम रमेश बहुत ही काबिल शख्सियत के साथ राजनीतिक पंडित के उपनाम से भी जाने जाते हैं। दो प्रदेश गंवाने और एक में करारी हार पर उनका यह बयान हैरान करता है कि 20 साल पहले भी कांग्रेस की ऐसे ही करारी हार हुई थी लेकिन वह फिर सत्ता में लौटी! जयराम रमेश का कथन सौ प्रतिशत सही है लेकिन क्या तब उसे आज जैसी भाजपा से लड़ना पड़ा था? कांग्रेस स्वयं कहती है कि भाजपा ईडी, आईटी, सीबीआई, इवीएम, इलेक्शन कमीशन आदि का इस्तेमाल चुनावी फायदे के लिए कर रही है।

राहुल गांधी लगातार कहते हैं कि भाजपा से लड़ना आसान है लेकिन जिन संवैधानिक संस्थाओं पर आरएसएस विचारधारा से लैश लोगों को बिठा रखा है, उससे लड़ना आसान नहीं है। फिर जय राम रमेश का यह कहना कितना बचकाना है कि कांग्रेस हारकर फिर सत्ता में लौटी थी? चुनाव को लेकर मौजूदा सरकार पर कांग्रेस के आरोपों का आधार क्या है, यह वह जानें, और यदि यह सब जानते हुए भी कांग्रेस मुगालते में है तो यह चकित करता है। हाल ही में संपन्न हुए पांच प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में कम से कम तीन प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार बनने की प्रबल संभावना थी। राजस्थान को लेकर ही थोड़ा संशय था लेकिन छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने की बात हर जुबान पर थी। चुनाव परिणाम बिल्कुल ठीक उलट आए, सिर्फ तेलंगाना ही हाथ लगा वह भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व अब मुख्यमंत्री हुए रेवंत रेड्डी की वजह से। रेवंत रेड्डी तो कांग्रेस में भाजपा से आए हैं। बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उन्होंने जैसी मेहनत की है, क्या कोई मूल कांग्रेसी प्रदेश अध्यक्ष वैसी मेहनत कर पाया है?

हार वाले चुनावी राज्यों में कांग्रेस का जो संगठन है और उसके जो मठाधीश है इनसे कांग्रेस आलाकमान की तरफ से कोई जवाब तलब अभी सामने नहीं आया, ऐसे में यह समझा जाना चाहिए कि कांग्रेस आलाकमान ने भी इस हार को विधि का विधान मान कर चुप्पी साध ली है। प्रदेशों में कांग्रेस में अंतर्विरोध के चलते पार्टी को पहले भी कुछ प्रदेशों में हार का सामना करना पड़ा है लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने इसमें सुधार की जरूरत ही नहीं समझी। देखा जाए तो अपनी भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी ने कांग्रेस को कुछ हद तक मजबूती प्रदान की थी। दक्षिण भारत में पार्टी को अपेक्षाकृत कामयाबी भी मिली है लेकिन हिंदी पट्टी में उसकी जमीन बेहद कमजोर हुई है और इसे तब‌ तक मजबूती नहीं मिलने वाली जबतक हिंदी पट्टी के कांग्रेस महारथी राहुल गांधी के कदम से कदम मिलाकर नहीं चलेंगे। आखिर राहुल ही अकेले किस किस से लड़ें?

बताने की जरूरत नहीं कि पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू की वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह को खोना पड़ा। इन दोनों की खींचतान से आजिज पंजाब के तत्कालीन प्रभारी हरीश रावत को इस पद से मुक्ति की गुहार लगानी पड़ी थी। पंजाब जहां कांग्रेस की सरकार थी वहां सिद्धू की ठोको ताली ने कांग्रेस सरकार में ही कील ठोंक दी। उत्तराखंड में राजनीतिक विश्लेषक मान कर चल रहे थे कि यहां कांग्रेस जीतेगी लेकिन हरीश रावत और हरख सिंह रावत के बीच की तनातनी से कांग्रेस हार गई। कांग्रेस की पिछले कुछ सालों की अंदरूनी उठापटक देखें तो लगेगा कि राहुल गांधी को एक साथ कई मोर्चों पर लड़ना पड़ा है। जिसमें सबसे विकट लड़ाई पार्टी के भीतर की ही है। कांग्रेस के असंतुष्ट सांसदों को मनाना आसान नहीं था, अकेले राहुल ने उन्हें मनाया। गुलाम नबी आजाद जैसे अति महत्वाकांक्षी लोग नहीं माने तो पार्टी छोड़ कांग्रेस की जड़ में मट्ठा डालने का अभियान चला रहे हैं।

मालूम हो कि कांग्रेस के लिए पार्टी छोड़ गए कांग्रेस नेताओं की लिखी आत्मकथाएं भी परेशान करती हैं। इस वक्त पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी की लिखी पुस्तक कांग्रेस की परेशानी का सबब है। शर्मिष्ठा मुखर्जी भी कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। उम्मीद थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, संजय सिंह, जितिन प्रसाद, रत्ना सिंह, गुलाम नबी आजाद, कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे सुविधा भोगी नेताओं के पार्टी छोड़ देने से कांग्रेस रिफ्रेश हो गई है लेकिन अभी भी कई ऐसे हैं जो शरीर से तो कांग्रेस में हैं लेकिन उनकी आत्मा कहीं और है। कांग्रेस के लिए जरूरी यह है कि वह इन्हें पहचाने और ठिकाने लगाए। कांग्रेस के प्रति सहानुभूति रखने वालों को इंतजार है कि छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में हार के बाद कांग्रेस आलाकमान, हार के लिए जिम्मेदारी के तौर पर किसकी शिनाख्त करती है, और उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करती है?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}