नेपाल

नेपाल में ओली सरकार के खिलाफ लामबंद होता विपक्ष

प्रचंड के नए सत्ता समीकरण का दावा कितना मजबूत ?

उमेश चन्द्र त्रिपाठी/ मनोज कुमार त्रिपाठी

काठमांडू /भैरहवा /महराजगंज! नेपाल में ओली सरकार के खिलाफ संपूर्ण विपक्ष गोलबंद होने लगा है। चौथी बार नेपाल सरकार की कमान संभाले ओली इस बार नेपाली कांग्रेस के गठबंधन से प्रधानमंत्री बने हैं। विपक्ष इसे बेमेल गठबंधन करार कर चुका है। विपक्ष का ओली सरकार के खिलाफ लामबंद होने के बीच काठमांडू में इस बात की भी चर्चा तेज है कि नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गगन थापा भारत में भारतीय जनता पार्टी संगठन के विदेश विभाग के प्रमुख के संपर्क में हैं। इस चर्चा ने कुछ दिन पूर्व प्रचंड के व्यक्त की गई उस आशंका को मजबूती दे रहा है जिसमें उन्होंने नेपाल मीडिया से नेपाल में सत्ता के नए समीकरण की संभावना जताई थी।

फिलहाल अभी माओवादी केंद्र के अध्यक्ष व पूर्व पीएम पुष्प कमल दहाल प्रचंड की पार्टी ओली सरकार के खिलाफ खुलकर सड़क पर उतरी है। 27 अक्टूबर को राजधानी काठमांडू की सड़कें लाल थी। तकरीबन तीस हजार माओवादी कार्यकर्ता हाथ में पार्टी और राष्ट्रीय झंडा लिए ओली के खिलाफ नारेबाजी करते हुए काठमांडू की सड़कों पर कई घंटे तक प्रदर्शन किए। माओवादी कार्यकर्ताओं का यह जलूस भद्रकाली, सुंधारा होते हुए रत्ना पार्क, बाग बाजार, पुतली सड़क, पद्मोदय मोड़ के निकट भृकुटी मंडप पर भारी सभा में तब्दील हो गया। यहां पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रचंड ने ओली को सत्ता लोलुप बताते हुए उन पर भ्रष्टाचार के ढेरों आरोप लगाए। ओली सरकार के सौ दिन पूरा होने पर प्रचंड ने ओली पर एक- एक करके भ्रष्टाचार के अनगिनत मुद्दे उछालकर जमकर निशाना साधा। नेपाल में लोकतंत्र बहाली के बाद किसी सरकार के खिलाफ इतना बड़ा प्रदर्शन काठमांडू में पहली बार देखा गया।

बता दें कि जुलाई माह में एक सुनियोजित साजिश के तहत प्रचंड को उस वक्त सत्ता से बेदखल किया गया था जब वे भ्रष्टाचार के खिलाफ खुला जंग छेड़ दिए थे। प्रचंड की सरकार नेपाली कांग्रेस के समर्थन पर टिकी थी। प्रचंड के इस मुहिम में ओली और नेपाली कांग्रेस के कई बड़े नेता फंस रहे थे। भ्रष्टाचार में लिप्त इन नेताओं के खिलाफ अभियोग भी दर्ज है। कुछ जेल में हैं कुछ बाहर आ गए हैं। प्रधानमंत्री ओली प्रचंड सरकार में गृहमंत्री रहे रवि लामिछाने पर काफी गुस्सा में हैं। उनका मानना है कि उनके पार्टी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के पीछे उन्हीं का दिमाग है। रवि लामिछाने नेपाल के मुखर पत्रकार रहे हैं। इसी चुनाव में उन्होंने राजनीति में कदम रखा है। राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी का गठन कर चुनाव मैदान में उतरे रवि लामिछाने की पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए आधा दर्जन से अधिक सीटों पर जीत दर्ज की। ओली के समर्थन से बनी प्रचंड सरकार में रवि लामिछाने उप प्रधानमंत्री के साथ साथ गृहमंत्री भी थे।

बतौर पत्रकार भ्रष्टाचार के एक से एक मामले को उजागर करते रहने वाले रवि लामिछाने गृहमंत्री बनने के बाद भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ते रहे। उन्हें इस बात की तनिक भी परवाह नहीं थी कि ओली के समर्थन से बनी उनकी सरकार रहेगी या जाएगी। बहरहाल सरकार से हटने के बाद ओली सरकार ने पूर्व गृहमंत्री रवि लामिछाने के खिलाफ ताबड़तोड़ दो मुकदमें दर्ज कर अपने बदले की भावना का इजहार कर दिया है। रवि लामिछाने ने ओली को देश का सबसे भ्रष्ट नेता करार दिया है।

ओली के लिए खतरा केवल प्रचंड ही नहीं हैं। बड़े कद वाले मधेशी नेता उपेंद्र यादव जो इस सरकार को समर्थन तो दे रहे हैं लेकिन सरकार में नहीं हैं। जानकार कहते हैं कि उपेंद्र यादव को कोई बड़ा आफर मिले तो वे पाला बदलने में तनिक भी देर नहीं करेंगे। इसके इतर नेपाल में प्रचंड के पूर्व सहयोगी व पूर्व पीएम डाक्टर बाबू राम भट्टाराई और पूर्वी मधेश क्षेत्र में खासा प्रभाव रखने वाले पूर्व स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र महतो ने हाल ही नई पार्टी का गठन किया है। उम्मीद है ये आने वाले दिनों में एमाले, माओवादी केंद्र अथवा नेपाली कांग्रेस से तालमेल कर चुनाव लड़ेंगे। यदि ये नवगठित दलें अलग चुनाव लड़ी तो अलग थलग रह जाएंगी।

नेपाल की राजनीति में मधेशी दलों का खासा प्रभाव रहा है, खासकर तराई बेल्ट में। ये अलग-अलग बंटकर अपना ही नुकसान किए। नेपाल की राजनीति में क्षेत्रीय व छोटे दलों का प्रभाव आने वाले दिनों में और घटेगा। सिर्फ तीन बड़ी पार्टियां ही जनता की नजर में रहेंगी। ये हैं नेपाली कांग्रेस, एमाले और माओवादी केंद्र। कम्युनिस्ट पार्टियों का अलग-अलग होना चीन को अच्छा नहीं लग रहा है। वह पूरी कोशिश में है कि प्रचंड और ओली एक साथ आ जायें लेकिन यह भारत के लिए ठीक नहीं है। ओली की छवि भारत विरोधी की है जबकि कट्टर कम्युनिस्ट विचारधारा वाले प्रचंड की छवि संतुलन बनाकर चलने वाले नेता की है। नेपाल और भारत के बीच किसी विवादित मुद्दे पर भारत के खिलाफ ओली की कड़ी आपत्ति के इतर प्रचंड बात चीत से समाधान के हिमायती रहे हैं।

फिलहाल जैसा कि प्रचंड ने नए सत्ता समीकरण की संभावना जताई है, उसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही लेकिन लोकतंत्र बहाली के बाद नेपाल में अब तक जितनी भी गठबंधन की सरकार सत्तारूढ़ हुई, सबके सब बिना किसी संभावना के ही सत्ता में आए। अभी जो एमाले और नेपाली कांग्रेस की सरकार सत्तासीन है, आखिर वह भी तो बिना संभावना के ही है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}