नैतिक नियमों का संग्रह था सम्राट अशोक का धम्म: प्रो दिग्विजयनाथ
डीवीएनपीजी में सम्राट अशोक का धम्म विषय पर आयोजित हुआ विशिष्ट व्याख्यान
गोरखपुर। दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग के तत्वावधान में सम्राट अशोक का धम्म एवं उसकी प्रासंगिकता विषय पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया।
मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं आचार्य प्रो. दिग्विजयनाथ ने कहा कि सम्राट अशोक का धम्म उनके द्वारा नैतिक नियमों का संग्रह था जो सर्वसाधारण के लिए मानवधर्म था। साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से सम्राट अशोक अद्वितीय है, उन्होंने भय से साम्राज्य विस्तार के जगह प्रेम से साम्राज्य विस्तार को महत्व दिया। अशोक के धम्म में कल्याणकारी उपायों को शामिल किया गया, जैसे पेड़ लगाना, कुएं खोदना और सभी के लिए शिक्षा व स्वास्थ सुविधाएॅ प्रदान करना। इसके साथ ही इनके धम्म में बड़े के साथ ही सेवकों के साथ भी सम्मान पूर्वक व्यवहार की बात कही गयी। अशोक ने केवल आदेश ही पारित नही किया बल्कि उन्हें समाज में अनुपालन कराने का भी प्रयास किया। भावनात्मक एकता की स्थापना अशोक के धम्म के मूल में है। वर्तमान सामाजिक परिवेश में भी अशोक के धम्म की प्रासंगिकता है।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि आदर्श आचार संहिता का संकलन ही अशोक का धम्म है जिसे उन्होंने सामाजिक आचार संहिता के रूप में पूरी दुनिया को दिखाया। श्रुति, स्मृति व लोकाचार प्राचीन भारतीय चिन्तन के मूल आधार हैं। वेदों में लिखे शब्दों के अर्थ विपर्यय के कारण उनका अलग अर्थ लगा लिया गया, जिससे मूल संदेश को समझा ही नहीं जा सका।
इस कार्यक्रम में आभार ज्ञापन सुरेन्द्र चौहान, स्वागत उद्बोधन डॉ. रामप्रसाद यादव आभार ज्ञापन एवं संचालन डॉ. कामिनी सिंह ने किया। इस अवसर पर प्रो. अर्चना सिंह, डॉ. निधि राय, डॉ. धीरज सिंह, डॉ. शिव कुमार, इन्द्रेश पाण्डेय, डॉ. सुनील सिंह, विवेकानन्द, डॉ. श्याम सिंह सहित महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक, कर्मचारी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।