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नेपाली विदेश मंत्री की ड्रैगन को दो टूक, हमें लोन नहीं ग्रांट चाहिए-आरजू राणा देउबा विदेश मंत्री नेपाल

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

काठमांडू /नेपाल ! नेपाल ने कहा है कि वह चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के तहत परियोजनाओं के लिए कर्ज लेने की स्थिति में नहीं है। इसके बजाय वह ग्रांट पर निर्भर रहेगा और सभी हितधारकों के बीच आपसी सहमति के आधार पर आगे बढ़ेगा। चीन की तीन दिवसीय यात्रा से लौटीं नेपाल की विदेश मंत्री आरजू राणा देउबा ने शनिवार को ये बात कही है। काठमांडू लौटने पर उन्होंने बीआरआई परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर नेपाल की स्थिति स्पष्ट की। आरजू राणा की चीन यात्रा का मकसद अपने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की दो दिसंबर से होने वाली बीजिंग की आधिकारिक यात्रा की तैयारी करना था।

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, देउबा ने कहा कि नेपाल ने 2017 में बीआरआई रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन इसके जमीन पर उतारने के तौर तरीकों पर चर्चा अभी भी जारी है। बीआरआई के तहत परियोजनाएं नेपाल, चीन और नेपाल के सभी हितधारकों के बीच समझौतों और आपसी समझ के आधार पर ही आगे बढ़ेंगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नेपाल वर्तमान में बीआरआई के तहत ऋण लेने की स्थिति में नहीं है। हमने अपनी बातचीत के दौरान चीनी पक्ष को यह स्पष्ट कर दिया है।

नेपाल ने चीन के सामने साफ की अपनी स्थिति

नेपाल की विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि सत्तारूढ़ गठबंधन सहयोगी नेपाली कांग्रेस (एनसी) ने पहले ही कर्ज के बजाय ग्रांट के आधार पर बीआरआई परियोजनाओं को लागू करने का फैसला किया है। चीन में भी हमारी चर्चा अनुदान के जरिए बीआरआई परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के इर्द-गिर्द घूमती रही।

श्रीलंका भी चीन की बीआरआई पहल में हिस्सेदार है लेकिन उसकी कई चिंताएं हैं। खासतौर से चीन के श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के पट्टे पर हासिल करने के बाद बीआरआई को लेकर उसकी चिंताएं बढ़ी हैं।

बीआरआई चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एक पसंदीदा परियोजना है, जिसका उद्देश्य बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के निर्माण में निवेश के साथ चीन के वैश्विक प्रभाव को आगे बढ़ाना है। हालांकि अमेरिका और भारत सहित कई देशों ने बीआरआई पर लगातार चिंता जताई है क्योंकि चीन ने बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए छोटे देशों को उनकी क्षमता पर विचार किए बिना भारी ऋण दिया है। इससे ये देश एक कर्ज जाल में फंस रहे हैं।

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