पशुओं में लम्पी बीमारी (LSD) से बचाव के लिए प्रशासन ने जारी किए निर्देश

हर्षोदय टाइम्स ब्यूरो महराजगंज
महराजगंज जिले में पशुओं में फैल रही लम्पी स्किन डिज़ीज़ (LSD) को देखते हुए प्रशासन ने रोकथाम एवं सावधानियों को लेकर विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह बीमारी मच्छर, मक्खी, जूँ, बीड़ आदि के काटने से तथा संक्रमित पशुओं के सीधे संपर्क में आने से फैलती है।
बीमारी के लक्षण
विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमारी से पीड़ित पशुओं में तेज बुखार (103 से 106 डिग्री फारेनहाइट), आँख और नाक से पानी गिरना, शरीर पर कठोर गोल गाँठें निकलना, थनों में सूजन और दूध उत्पादन में कमी देखी जाती है। गंभीर स्थिति में गर्भपात और बाँझपन की समस्या भी सामने आती है।

उपचार और बचाव
लम्पी एक वायरस जनित बीमारी है जिसका कोई विशेष इलाज उपलब्ध नहीं है, केवल लक्षणों को नियंत्रित कर पशु को राहत दी जा सकती है। पशुपालकों को सलाह दी गई है कि वे पशुओं को साफ-सुथरे और मक्खी-मच्छर रहित वातावरण में रखें। बीमार पशुओं को तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें तथा पशु चिकित्सक से परामर्श लें।
प्रशासन की अपील
रोग की सूचना नज़दीकी पशु चिकित्सक या संबंधित अधिकारियों को तुरंत दें।
मृत पशुओं को सुरक्षित तरीके से गाड़ने या नष्ट करने की व्यवस्था करें।
बाड़ों में कीटनाशक का छिड़काव करें और पशुओं पर परजीवीरोधी दवाओं का प्रयोग करें।
क्या न करें
बीमार पशुओं को हाट-बाज़ार, मेले या अन्यत्र बेचने या ले जाने से बचें।
संक्रमित पशुओं का दूध, मांस या खाल का उपयोग न करें।
बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं के बीच न रखें।
पशुओं में लंपी रोग से बचाव और उपचार
पशुओं में लंपी स्किन डिज़ीज़ (एल.एस.डी.) संक्रमण की रोकथाम व उपचार को लेकर पशुपालन विभाग ने पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं। विभाग ने बताया कि संक्रमण के 4 से 14 दिनों में घरेलू औषधीय व्यवस्था अपनाकर पशुओं को राहत पहुंचाई जा सकती है।
घरेलू औषधीय व्यवस्था
नीम, तुलसी और गिलोय के पत्ते, लौंग, काली मिर्च, इलायची, पपीते के पत्ते, जीरा और हल्दी पाउडर जैसी सामग्री को अच्छी तरह पीसकर गुड़ के साथ लड्डू बना लें। यह लड्डू पशु को सुबह, शाम और रात में खिलाने से रोग में काफी राहत मिलती है।
खुले घाव के लिए उपचार
विभाग ने यह भी बताया कि नीम, तुलसी, मेथी और लहसुन की कली को पीसकर नारियल तेल में मिलाकर घाव पर लगाने से संक्रमण नियंत्रित किया जा सकता है। घाव को पहले नमक वाले पानी से धोने और साफ करने के बाद ही यह तेल लगाना चाहिए।
आपातकालीन संपर्क
विभाग ने पशुपालकों से अपील की है कि गंभीर स्थिति में वे टोल-फ्री नंबर 1962 या नजदीकी पशु चिकित्सालय से तत्काल संपर्क करें।
मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. हौसला प्रसाद ने बताया कि “समय पर सतर्कता और सावधानी बरतकर इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।”
प्रशासन का कहना है कि “रोगी पशु के दूध को उबालकर पीने या रोगी पशु के संपर्क में आने से मनुष्यों में रोग फैलने की कोई आशंका नहीं है। अवांछित अफवाहों से खुद को बचाएं”।