उत्तर प्रदेशमहराजगंज

कुशीनगर जिले में पहली बार एसपी ने सभी थानों में जन्माष्टमी का पर्व समारोह पूर्वक मनाने का दिया निर्देश

  • जानिए आखिर क्यों नहीं मनाती थी कुशीनगर पुलिस जनमाष्टमी का त्योहार
  • जनपद सृजन के पहले वर्ष 1994 में 31 साल बाद कुशीनगर पुलिस भी मनाएगी जन्माष्टमी

अजय कुमार पाठक ब्यूरो कुशीनगर


कुशीनगर । ठीक जन्माष्टमी की आधी रात को घटित एक दर्दनाक घटना ने जिले की पुलिस के दिलों पर गहरा असर छोड़ा, जिसके चलते जिले के किसी भी थाने में जन्माष्टमी का पर्व नहीं मनाया जाता था। इस साल पहली बार एसपी ने सभी थानों में जन्माष्टमी का पर्व समारोह पूर्वक मनाने का निर्देश दिया है।

इसको लेकर थानों की पुलिस ने क्षेत्र के संभ्रांत लोगों को निमंत्रण देना शुरू कर दिया है। यह कहानी 1994 की है, जब देवरिया जिला से अलग होकर नया जिला पडरौना बना था और तब इसका नामकरण कुशीनगर के रूप में नहीं हुआ था। उस समय जिले में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूमधाम चल रही थी और पुलिस महकमा भी उत्सव की तैयारियों में जुटा था।

लेकिन इसी दौरान एक त्रासदी ने इस उत्सव को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। वह समय था जब बिहार और यूपी के सीमावर्ती क्षेत्रों में जंगल दस्युओं का आतंक था। वासदेव, भागड़, अलाउद्दीन, लोहा और रामायासी गैंग के बदमाश इलाके में खौफ का सबब बने हुए थे। 30 अगस्त, 1994 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर जनपद सृजन के बाद पहली बार पुलिस लाइन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर उत्सव की तैयारी हो रही थी। जिले के सभी थानों की पुलिस फोर्स वहां पहुंची हुई थी।

इसी दौरान कुबेरस्थान थानाक्षेत्र के जंगल पचरुखिया में डकैतों के होने की सूचना मिली। इस सूचना पर एसओ राजेन्द्र यादव और तरयासुजान थाने के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अनिल पाण्डेय के नेतृत्व में पुलिस टीम मौके पर पहुंची। पुलिस टीम ने नाव की मदद से बांसी नदी पार कर बिहार के बरवा गांव पहुंची लेकिन डकैतों ने उन्हें देख लिया और नदी के किनारे छिप गए। पहले दल के वापस लौटने के बाद जब दूसरी टीम ने नदी के पास पहुंचने की कोशिश की तो डकैतों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इस फायरिंग में नाविक भुखल और सिपाही विश्वनाथ यादव को गोली लगी और नाव की छोटी डेंगी नदी में डूब गई। पुलिसकर्मी नदी में गिर गए और डकैतों ने 40 राउंड फायरिंग की।

सीओ सदर आरपी सिंह ने तुरंत एसपी बुद्धचंद को सूचना दी, जिसके बाद मौके पर अतिरिक्त फोर्स भेजी गई। खोजबीन में एसओ तरयासुजान अनिल पांडेय, एसओ कुबेरस्थान राजेंद्र यादव, सिपाही नागेंद्र पांडेय, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव और परशुराम गुप्त शहीद पाए गए। घटना में नाविक भुखल भी मारा गया। केवल दरोगा अंगद राय, आरक्षी लालजी यादव, श्यामा शंकर राय और अनिल सिंह सुरक्षित बच सके।

इस घटना के बाद कोतवाल योगेंद्र सिंह ने अज्ञात बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। तत्कालीन डीजीपी ने भी घटना स्थल का दौरा किया और मुठभेड़ की जानकारी ली। इस घटना के बाद तत्कालीन एसपी पर गंभीर आरोप भी लगे थे।

पडरौना कोतवाली एवं कुबेरस्थान थाने में इस घटना की याद में स्मृति द्वार स्थापित किया गया है, जो शहीद पुलिसकर्मियों की बहादुरी और बलिदान को हमेशा के लिए याद दिलाता है। तभी से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की परंपरा इस त्रासदी के चलते कुशीनगर पुलिस नहीं मनाती है।

एसपी संतोष कुमार मिश्र के निर्देश पर इस वर्ष से इस परंपरा की शुरूआत करने जा रही है। इसके लिए सभी थानों की पुलिस ने क्षेत्र के संभ्रांत लोगों आमंत्रण देना भी शुरू कर दिया है।

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