
नेपाल क्या बन पाएगा हिंदू राष्ट्र?
सार
नेपाल में एक बार फिर राजशाही की वापसी के लिए प्रदर्शन हो रहा है। मंगलवार को हजारों लोग राजशाही के समर्थन में काठमांडू की सड़कों पर उतरे। इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच झड़प हो गई। पुलिस ने लाठीचार्ज किया और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया है। कई प्रदर्शनकारी जख्मी हैं।
उमेश चन्द्र त्रिपाठी
काठमांडू/महराजगंज: नेपाल में समय-समय पर राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र की मांग उठती रहती है। एक बार फिर यह डिमांड उठी है। मंगलवार को राजशाही की बहाली की मांग कर रहे सैकड़ों प्रदर्शनकारी काठमांडू की सड़कों पर उतरे। इस दौरान उनकी पुलिस से झड़प हो गई। 2008 में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को सत्ता से हटा दिया गया था। उनके समर्थकों ने पीएम और अन्य प्रमुख सरकारी विभागों के कार्यालयों तक पहुंचने की कोशिश की। इस दौरान रास्ते में लगे बैरिकेड्स को तोड़ने की कोशिश हुई।


प्रदर्शनकारियों को पीछे धकेलने के लिए पुलिस ने लाठी और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया। किसी भी प्रदर्शनकारी को गंभीर चोट की खबर सामने नहीं आई है। ज्ञानेंद्र के प्रमुख समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से प्रदर्शन का आह्वान किया गया था। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने, ‘राजशाही वापस लाओ, गणतंत्र को खत्म करो’ के नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने कहा, ‘हम अपने राजा और देश को जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं।
हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग
प्रदर्शनकारियों ने नेपाल को एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग की है। 2007 के अंतरिम संविधान में नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया था। 2006 में कई हफ्तों तक सड़क पर विरोध प्रदर्शन के कारण ज्ञानेंद्र को अपना सत्तावादी शासन छोड़कर सत्ता वापस संसद को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा। दो साल बाद संसद ने पुरानी राजशाही को खत्म करने के लिए मतदान किया। तब से ज्ञानेंद्र बिना किसी शक्ति या सरकारी संरक्षण के एक सामान्य नागरिक के रूप में रह रहे हैं।
क्यों राजा की वापसी चाहते हैं लोग
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के पास अभी भी कुछ समर्थन है, लेकिन सत्ता में वापसी की संभावना कम है। राजशाही के समर्थक देश के प्रमुख राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार और विफल शासन का आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि लोग राजनेताओं से खुश नहीं हैं। राजशाही खत्म होने के बाद नेपाल में 13 सरकारें बन चुकी हैं। यह सरकारें भारत और चीन के बीच फंसी रहती हैं। कुछ सप्ताह पहले ही में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ लिया। उन्होंने केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के साथ मिलकर नई सरकार बनाई, जिसका रुख चीन समर्थक रहा है।