भाजपा के चक्रव्यूह में फंस गई कांग्रेस

हरियाणा विधान सभा चुनाव 2024
कांग्रेस के मठाधीशों ने कराया बंटाधार
उमेश चन्द्र त्रिपाठी
नई दिल्ली/महराजगंज! हरियाणा विधान सभा चुनाव परिणाम की समीक्षा तमाम लोग तमाम तरह से कर रहे होंगे। इसमें ईवीएम, सरकारी तंत्र के दुरपयोग, कांग्रेस का अति विश्वास, बेइमानी, धांधली आदि-आदि हो सकता है। हरियाणा में कांग्रेस की पराजय में इसके इतर एक सच यह भी है कि कांग्रेस आला कमान का “जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के शिवा चौथा पांचवां कोई नहीं” अपने क्षेत्रीय मठाधीशों से डरना है। इन्हीं मठाधीशों के कहने पर ही विधानसभा चुनावों में कांग्रेस अपने सहयोगी दलों को इग्नोर कर जहां-जहां चुनाव लड़ी है, उसे खामियाजा भुगतना पड़ा है। पूर्व में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के चुनावों में उसने ऐसा करने का खामियाजा भुगता है। फिर भी उसने कोई सबक नहीं लिया और उसका खामियाजा उसे हरियाणा में भी भुगतना पड़ा। हरियाणा में कुमारी शैलजा की नाराजगी दलितों को संदेश देने के लिए काफी था। अपनों को टिकट दिलाने की जिद ऐसी थी कि उनके दबाव में आलाकमान को एक सीट से घोषित उम्मीदवार तक बदलना पड़ा। हालांकि शैलजा ने जितनों को टिकट दिलाया वे एक भी नहीं जीत पाए। भूपेंद्र हुड्डा भी कम खेल नहीं किए। उनकी संस्तुति पर दो तीन बार हारे हुए लोगों को भी टिकट देने को मजबूर होना पड़ा आलाकमान को। एक भी नहीं जीते। हरियाणा में कई जगह ईवीएम की हेरा फेरी कर चुनाव परिणाम को प्रभावित करने का कांग्रेस का आरोप सच हो सकता है लेकिन एक जीती हुई बाजी हार जाने से उसे गठबंधन के सहयोगियों के निशाने पर आना पड़ रहा है। जम्मू कश्मीर में भाजपा को सत्ता में आने से रोक पाने में कांग्रेस की रत्ती भर भूमिका नहीं रही। 38 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 6 सीटें जीत पाना कोई बहादुरी नहीं है। वहां नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला के करिश्में की दाद देनी होगी जिसने भाजपा के साथ गुलाम नबी आजाद, इंजीनियर रशीद और महबूबा मुफ्ती से लड़कर 42 सीटें हथिया कर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली।
निसंदेह हरियाणा में कांग्रेस की जीत की बिसात बिछ चुकी थी जिसे मामूली रणनीति बनाकर हासिल भर करना था, कांग्रेस ऐसा कर पाने में चूक गई और भाजपा अपनी गोपनीय रणनीति के तहत बाजी मारी ले गई। हरियाणा विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के भी कांग्रेस के साझे में चुनाव लड़ने की संभावना थी। कौन कितनी सीटें मांग रहा था, यह छोड़िए, आम आदमी पार्टी पांच और सपा तीन सीट पर ही मानने को तैयार हो गई थी जिसे राहुल गांधी देना भी चाहते थे लेकिन हरियाणा के कांग्रेसी क्षत्रप भूपेंद्र हुड्डा बिल्कुल ही देने को तैयार नहीं हुए लिहाजा आम आदमी पार्टी हरियाणा भर में चुनाव लड़ गई तो अखिलेश यादव को हरियाणा में लाया ही नहीं गया। कहना न होगा कि हरियाणा में जितनी सीटों पर कांग्रेस बेहद कम वोटों के अंतर से चुनाव हारी है वहां निश्चित ही आम आदमी पार्टी को मिले वोट और यादव वोटरों की बेरुखी कांग्रेस को नुक्सान ही पंहुचाई होगी।
हरियाणा के 9 प्रतिशत यादव आखिर क्यों कांग्रेस को वोट देने को सोचें?
हरियाणा में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह दलित वोटर भी हो सकते हैं जिनका बड़ा भाग अपने कुल गुरू राम रहीम से प्रभावित रहता है। 2005 से 2015 तक राम रहीम के प्रभाव का फायदा कांग्रेस उठा चुकी है जब उसने चौटाला के खिलाफ कांग्रेस का समर्थन किया था। अब राम रहीम का फायदा भाजपा उठा रही है। दलित समाज के पुरुष वोटर एक बार किसी और को वोट देने को सोच भी सकते हैं लेकिन दलित महिलाएं वहीं वोट देंगी जहां बाबा राम रहीम का इशारा होगा। आखिर बीच चुनाव में राम रहीम की रिहाई अनायास नहीं हुई है। निश्चित ही इस रिहाई का फायदा भाजपा को मिला। कांग्रेस इसे समझ नहीं पाई। राहुल गांधी हरियाणा के सभी 36 बिरादरी की बात भले ही करते रहे लेकिन इस बार विधान सभा चुनाव में जाट बनाम अन्य का मुद्दा भी अंदर खाने खूब चला।

संभवतः हरियाणा विधान सभा का यह
पहला चुनाव था जब रेकार्ड चार सौ निर्दल उम्मीदवार मैदान में थे जिसमें आधे से अधिक भाजपा द्वारा प्रायोजित थे।
इन निर्दलियों के हिस्से में जितना भी वोट आया सबके सब गैर भाजपा वोट ही थे। कांग्रेस चुनावी सफलता के लिए भाजपा के इस रणनीतिक पैंतरे को भी समझने में भी चूक गई। दर असल राहुल गांधी अपनी सभाओं में उमड़ रही भीड़ और कुछ सोशल एक्टिविस्टों के विश्लेषण को ही चुनाव परिणाम मान बैठे।
हरियाणा चुनाव परिणाम का असर किसी भी वक्त महाराष्ट्र, झारखंड और बिहार के चुनाव में सीटों के बंटवारे पर पड़ना तय है जहां कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा है। यहां कांग्रेस को मनमानी सीटें मांगने में शर्मिंदगी महसूस होगी। यूपी के दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस को त्याग के लिए तैयार होना होगा क्योंकि हरियाणा के चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के लिए त्याग किया था।