रोटरी क्लब बुटवल ने काली गंडकी के तट पर बने गुरूकुल विद्याश्रम को दिया एक लाख रुपए का आर्थिक सहयोग

भगवान राम से जुड़ा है इसका इतिहास- बसन्त रोक्का प्रोप्राइटर माउंट एवरेस्ट कत्था मिल्स तिलोत्तमा नेपाल
इस विद्याश्रम में आधुनिक शिक्षा के अलावा गुरूकुल की होती है पढ़ाई – आचार्य चैतन्य कृष्ण आर्याल
मनोज कुमार त्रिपाठी
भैरहवा/ महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स): रोटरी क्लब आफ बुटवल साउथ द्वारा सहयोगात्मक कार्यक्रम के तहत शुक्रवार को स्यांगजा जिले में काली गंडकी नदी के तट पर पिछले पांच वर्षों से चल रहे चैतन्य कृष्ण आचार्य गुरूकुल विद्याश्रम को क्लब के सदस्य व माऊंट एवरेस्ट कत्था मिल्स प्रा. लि.तिलोत्मा नेपाल के प्रोप्राइटर बसन्त रोक्का ने एक लाख रुपए का आर्थिक सहयोग प्रदान किया।
इस क्लब की अध्यक्ष शारदा पंगिनी ने बताया कि रोटरी क्लब शिक्षा, स्वास्थ,पेय जल और स्वच्छ पर्यावरण के लिए सदैव आगे आकर काम करता रहता है इसी क्रम में आज चैतन्य कृष्ण आचार्य गुरूकुल विद्याश्रम प्रबंधन को क्लब के सदस्य और फैक्ट्री के प्रोप्राइटर बसन्त रोक्का ने सहयोग के रूप में एक लाख रुपए का चेक प्रदान किया। इस अवसर पर क्लब के पूर्व अध्यक्ष नेत्र पाठक,तारा नाथ खंडेल, समाजसेवी प्रकाश न्योपाने, रणवीर अस्पताल भैरहवा के डॉ ज्ञानू लामिछाने, जापानी समाजसेवी जापनिंग ओके वाजू,काजू मसाल कीमी, पाल्पा रामपुर के समाजसेवी समीर पौड़ेल, गुरूकुल विद्याश्रम के व्यवस्थापक चैतन्य कृष्ण आचार्य समेत कई गणमान्य नागरिक और रोटरी क्लब के सदस्य उपस्थित रहे।
बता दें कि वृंदा के श्राप के कारण भगवान विष्णु यहां पत्थर के रूप में रहते हैं । श्राप के प्रभाव से पत्थर रूपी भगवान को कीड़े कुतर भी देते हैं। हिमालय से निकलकर नेपाल के रास्ते कुशीनगर होकर पटना के पास गंगा में समाहित होने वाली नारायणी को पुराणों ग्रंथों में काफी पवित्र बताया गया है।
हिमालय पर्वत शृंखला के धौलागिरि पर्वत के मुक्तिधाम से निकली गंडक नदी गंगा की सप्तधारा में से एक है। नदी तिब्बत व नेपाल से निकलकर उत्तर प्रदेश के महराजगंज, कुशीनगर होते हुए बिहार के सोनपुर के पास गंगा नदी में मिल जाती है। इस नदी को बड़ी गंडक, गंडकी, शालिग्रामी, नारायणी, सप्त गंडकी आदि नामों से जाना जाता है।
नदी के 1310 किलोमीटर लंबे सफर में तमाम धार्मिक स्थल हैं। इसी नदी में महाभारत काल में गज और ग्राह (हाथी और घड़ियाल ) का युद्ध हुआ था, जिसमें गज की गुहार पर भगवान कृष्ण ने पहुंचकर उसकी जान बचाई थी। जरासंध वध के बाद पांडवों ने इसी पवित्र नदी में स्नान किया था। इस नदी में स्नान व ठाकुर जी की पूजा से सांसारिक आवागमन से मुक्ति मिल जाती है।
वृंदा के श्राप से पत्थर हो गए थे भगवान
गंडक नदी व भगवान के पत्थर बनने की बड़ी रोचक कथा वर्णित है। शंखचूड़ नाम के दैत्य की पत्नी वृन्दा भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। वे भगवान को अपने हृदय में धारण करना चाहती थी। पतिव्रता वृन्दा के साथ छल करने के कारण वृंदा ने भगवान को श्राप देते हुए पाषाण (पत्थर) हो जाने व कीटों द्वारा कुतरे जाने का श्राप दे दिया था। भक्त के श्राप का आदर कर भगवान पत्थर रूप में गंडक नदी में मिलते हैं। भगवान विष्णु के जिस शालीग्राम रूप की पूजा होती है वह विशेष पत्थर (ठाकुर जी) इसी नारायणी (गंडक ) में मिलता है।
गंडक नदी में ठाकुर जी को आकृति मिलती है उसमें भगवान विष्णु का वास होता है। नदी में पाए जाने वाले शिला जीवित होते हैं व बढ़ते रहते हैं।
1 – एक द्वार, चार चक्र श्याम वर्ण की शिला को लक्ष्मी जनार्दन कहते हैं।
2- दो द्वार ,चार चक्र, गाय के खुर वाले शिला को राघवेंद्र कहा जाता है।
3- दो सूक्ष्म चक्र चिन्ह व श्याम वर्ण शिला को दधिवामन कहा जाता है।
4- छोटे-छोटे दो चक्र व वनमाला के चिन्ह वाले शिला को श्रीधर कहा गया है।
5- मोटी व पूरी गोल, दो छोटे चक्र वाली शिला को दामोदर नाम दिया गया है।
इसी तरह अलग-अलग शिला को रण राम, राजराजेश्वर, अनंत, सुदर्शन, मधुसूदन, हयग्रीव, नरसिंह, वासुदेव, प्रद्युम्न, संकर्षण, अनिरुद्ध जैसे नामों से पूजा जाता है।