नेपालमहराजगंज

नेपाल भारत-चीन तनाव का फायदा उठाने के प्रयास में बुरा फंसा, अब विदेशी निवेशको के लिए तरस रहा

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

काठमांडू/महराजगंज: नेपाल की पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ सरकार विदेशी निवेश को पाने के लिए आतुर दिखाई दे रही है। प्रचंड सरकार ने इसी हफ्ते नेपाल निवेश शिखर सम्मेलन 2024 का आयोजन कर विदेशी निवेश को आकर्षित करने की खूब कोशिश की है। लेकिन, नेपाल में जारी भूराजनीतिक हालात को देखते हुए विदेशी निवेशक दूरी बनाए हुए हैं।

नेपाल इन दिनों भारत और चीन के बीच खींचतान का अड्डा बना हुआ है। चीन  नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सहायता से प्रचंड सरकार पर दबाव बनाए हुए है। वहीं भारत नहीं चाहता कि किसी भी कीमत पर नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़े। इन सबके बीच नेपाल की आर्थिक प्रगति दांव पर लगी हुई है।

नेपाल में चीनी कंपनियां निवेश को बेचैन

नेपाली टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कई चीनी कंपनियां जो नेपाल में ऊर्जा परियोजनाएं विकसित करने की प्रतीक्षा कर रही थीं, उन्हें भू-राजनीतिक दबाव के कारण अधर में लटका दिया गया है। चीनी कंपनी राइजेन एनर्जी इस सप्ताह शिखर सम्मेलन में नेपाल के सबसे बड़े सौर बिजली संयंत्र के लिए एक परियोजना विकास समझौते (पीडीए) पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार थी, लेकिन 190 मिलियन डॉलर की परियोजना अज्ञात कारणों से रुकी हुई है। शिखर सम्मेलन का आयोजनकर्ता निवेश बोर्ड नेपाल ग्रिड से जुड़े फोटोवोल्टिक उत्पादन प्रणाली के लिए राइजेन की सहायक कंपनी, राइजेन एनर्जी सिंगापुर जेवी के साथ बातचीत में शामिल था।

रिपोर्ट में बताया गया है कि निवेश बोर्ड के प्रवक्ता प्रद्युम्न उपाध्याय ने कहा कि समझौते में देरी हुई क्योंकि ‘अंतिम तैयारियां पूरी नहीं हुई हैं और बातचीत जारी है।’ लेकिन सरकार के सूत्रों ने खुलासा किया कि भारत की ओर से समझौते को आगे नहीं बढ़ाने का दबाव था क्योंकि दो सौर सरणी स्थल दक्षिणी सीमा के करीब थे। राइजेन का प्रस्ताव तराई के बांके और कपिलवस्तु जिलों में दो 125 एम डब्लू सौर ऊर्जा उत्पादन संयंत्र स्थापित करने का था। यह इंस्टालेशन सुबह और शाम के पीक आवर्स के दौरान प्रसारित होने वाली प्रत्येक दिन की 20 मेगावाट बिजली को संग्रहित करेगा।

भारतीय सीमा के करीब प्रोजक्ट लगाना चाहती हैं चीनी कंपनियां

नेपाली टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से बताया कि इसके अटकने का मुख्य कारण भारतीय सीमा के इतने करीब एक चीनी परियोजना के बारे में भारतीय आपत्तियां हैं।

आईबीएन के सीईओ सुशील भट्टा और राइजेन एनर्जी सिंगापुर जेवी के वांग कियांग ने तीन साल पहले एक विस्तृत व्यवहार्यता अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें महामारी के कारण देरी हुई थी। विद्युत विकास विभाग ने सर्वे लाइसेंस भी जारी कर दिया था। समझौते के तहत, परियोजना के लिए संपूर्ण पूंजी निवेश राइजेन से होगा जो शेन्ज़ेन स्टॉक मार्केट में एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत है।

दोनों देशों से फायदा उठाना चाहते हैं प्रचंड

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल भारत और चीन दोनों से फायदा उठाना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए शुरुआत में भारत समर्थक नेपाली कांग्रेस के साथ सरकार बनाई। इतना ही नहीं, प्रचंड ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना। लेकिन, जब उन्हें अपने मन मुताबिक फायदा नहीं मिला तो उन्होंने चीन समर्थक केपी शर्मी ओली की पार्टी से हाथ मिला लिया और नेपाली कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। इससे चीन को नेपाल में दखल बढ़ाने का सीधा मौका मिल गया, लेकिन भारत की कड़ी आपत्तियों के कारण चीन चाहकर भी नेपाल में अपनी मनमानी नहीं कर पा रहा है।

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