सुधार के प्रबंधन के लिए आवश्यक कानून में संशोधन करने की सिफारिश की

मनोज कुमार त्रिपाठी
काठमांडू नेपाल ! प्रतिनिधि सभा की कानून, न्याय और मानवाधिकार समिति के तहत उप-समिति ने सरकार को बाल सुधार को विनियमित करने के लिए आवश्यक कानून में संशोधन करने का सुझाव दिया है।
यह सुझाव रविवार को सिंह दरबार में आयोजित समिति की बैठक में नेपाल के बाल सुधार गृहों में बच्चों के मानवाधिकारों की स्थिति और नेपाल की जेलों में कैदियों और बंदियों की स्थिति की निगरानी के लिए गठित उप-समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में दिया गया था।
रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए उपसमिति की समन्वयक रंजू कुमारी झा ने कहा कि सुझाव दिया गया है कि न्यायालय को बच्चों के मामलों को प्राथमिकता देनी चाहिए और त्वरित फैसले की व्यवस्था करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि बाल सुधार केंद्रों में 45 प्रतिशत मामले जबरन दर्ज किये जाते हैं और उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को कानूनी व्यवस्था की समीक्षा करनी चाहिए और आवश्यक संशोधन करना चाहिए।
इसी प्रकार उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि चूंकि सभी जेलों में क्षमता से अधिक कैदी और बंदी हैं, इसलिए कैदियों और बंदियों को अलग-अलग रखा जाना चाहिए और कानून में खुली जेल का प्रावधान पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए।
बैठक में गृह मंत्री रमेश लेखक ने कहा कि चूंकि जेल का निर्माण संख्या के हिसाब से नहीं किया जा सकता, इसलिए क्षमता से अधिक कैदियों को रखने की मजबूरी है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में बताई गई समस्याएं पूरे देश में हैं और उन्होंने इसका अध्ययन कर समस्या का समाधान करने का वादा किया। उन्होंने कहा कि शारीरिक संरचना के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की कमजोरियों को सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाये जायेंगे तथा जेल के अंदर की सुरक्षा को मजबूत किया जायेगा।
उप-समिति ने सरकार को यह भी सुझाव दिया है कि बाल सुधार गृहों में बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए ऐसे स्कूलों की व्यवस्था होनी चाहिए जो कम से कम बुनियादी स्तर से लेकर माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्रदान करें। बाल सुधार गृहों से बाहर आने वाले बच्चों को शैक्षिक प्रशिक्षण और परामर्श प्रदान किया जाना चाहिए।
उप समिति ने बांके के जयेंदु बाल सुधार गृह और बांके, बर्दिया और सुर्खेत जिले के जेल की निगरानी के बाद एक रिपोर्ट तैयार की है।