एआरपी चयन प्रक्रिया पर शिक्षिका ने उठाया सवाल, लगाया भ्रष्टाचार का आरोप

- एआरपी पद पर चयन में अनियमितता का आरोप लगाकर उच्चस्तरीय जांच की मांग पर अड़ी है शिक्षिका
- शिक्षिका ने लगाया बेसिक शिक्षा विभाग पर बड़ा आरोप, टॉपर अभ्यर्थियों को किया गया फेल
- एआरपी चयन प्रक्रिया चढ़ी भ्रष्टाचार की भेंट, अकादमिक रिर्सोस पर्सन का हुआ था चयन
- डायट महराजगंज में लिया गया था साक्षात्कार
महराजगंज : परिषदीय विद्यालयों में सरकार द्वारा निपुण भारत मिशन के तहत विद्यालयों की शैक्षिक व्यवस्था सुधारने के लिए महराजगंज जनपद में एआरपी पद के लिए प्रत्येक बारह ब्लाकों के लिए निकाले गये विज्ञापन के अनुसार डायट महराजगंज पर आयोजित त्रिस्तरीय परीक्षा संपन्न होकर काउन्सलिंग हो चुका है। परंतु एआरपी पद की उम्मीदवार एक महिला शिक्षिका के द्वारा चयनित एआरपी के पद एवं योग्यता पर सोशल मीडिया पर सवाल उठाकर पूरी चयन प्रक्रिया की को ही चुनौती दे डाली। इतना ही नहीं शिक्षिका के द्वारा बेसिक शिक्षा विभाग तथा उच्चाधिकारियों के खिलाफ भी अशोभनीय टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिससे समाज में विभाग की छबि धूमिल होकर अधिकारियों की खूब किरकिरी हो रही है।
गौरतलब हो कि जनपद में एआरपी चयन के लिए प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इस बीच सिसवा ब्लाक की शिक्षिका श्रीमती सरिता त्रिपाठी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म से तमाम अशोभनीय टिप्पणी कर पूरी चयन प्रक्रिया पर ही सवालिया निशान खड़ा करते हुए अधिकारियों के खिलाफ बेहद गंभीर और अशोभनीय टिप्पणी कर सबको सकते में डाल दिया है।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे पत्र के अनुसार शिक्षिका सरिता त्रिपाठी ने लिखा है कि प्राथमिक शिक्षक संघ या चहेता पुरुष शिक्षक संघ या एआरपी चयन संघ, कैसे संबोधित किया जाय समझ से परे है। ये वही शिक्षक संघ है जिसका प्रतिनिधि हर वर्ष मेरे विद्यालय में आकर सदस्यता के नाम पर 100/- या 200/- वसूलता है सिर्फ़ इसलिए कि मुझ अदनी सी महिला को रास्ते से हटा कर अपने छिटपुट गैंग के अति प्रिय भाइयों को एआरपी जैसे छोटे से पद के लिए स्थापित कर पाए।
जी हां वही एआरपी पद जिसके लिए प्रथम बार संघ ने पुरजोर विरोध किया था और इस बार बकायदा लेटर हेड ज़ारी कर दिया कि संगठन के पदाधिकारी इस प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। ये दोगलापन यहीं नहीं बंद हो जाता, अपने चुनिंदा लोगों के लिए संगठन काउंसलिंग तक लड़ता है।
मैं पूछती हूं एक महिला के लिए जो तटस्थता संगठन ने दिखाई, अगर एआरपी चयन में ब्लॉक न बदलने की शर्त लग जाती तो क्या वह अपने चहेतों के लिए न लड़ता?
या यदि उनके चहेतों में महिला तो नहीं, परन्तु दिव्यांग पुरुष अभ्यर्थी की सुविधाजनक रैंक न आती तो दिव्यांग वरीयता की मांग न करता ? संगठन में दो तरह के लोग हैं, एक जिनसे चंदा वसूला जाता है और एक जिनके लिए लड़ा जाता है, भले ही चंदा देने वाले के खिलाफ़ ही क्यों न लड़ना पड़े।
बात है एआरपी चयन 2025 की। विभाग ने शुचितापूर्वक यह संपन्न करवाया। अंतिम काउंसलिंग में नवागत आदरणीया बीएसए मैम ने महिला अभ्यर्थियों को वरीयता देने की सोची उनके खिलाफ़ ये संगठन खड़ा हो गया जो कि चार दिन पहले उनका पुष्प गुच्छ लेकर स्वागत करने पहुंचा था। मैं बीएसए मैम से पुष्प गुच्छ लेकर मिलने कभी नहीं गई। पहली बार मैं उनसे काउंसलिंग के ही दिन मिली परन्तु महिला अभ्यर्थियों को वरीयता देने के लिए मैम मेरे लिए लड़ीं और संगठन उनसे लड़ा। हद तो तब हो गई जब मेरे सामने फोन लगा कर मुझे सुना कर संगठन के भैया से कहा गया, शांति से बात बन गई तो ठीक है, हंगामा करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। मानो एआरपी काउंसलिंग न हो किसी चुनाव की उम्मीदवारी का पर्चा दाखिला हो! क्या ये भैया मुझे शिक्षक संघ के लिए खतरा जैसा महसूस न कराकर अपने मजबूर चहेतों के लिए मुझसे पीछे हटने को सीधा नहीं कह सकते थे। संघ के लिए खतरा संघ की ही सदस्य महिला? इस प्रकार की अपमानजनक लामबंदी की क्या दरकार थी, जब मुझसे भी फोन करके कहा जा सकता था। बहनें सहर्ष भाइयों के लिए अधिकार छोड़ती आई हैं भैया जी।
यहां तक कि विज्ञान विषय के अलावा सब विषयों की काउंसलिंग हो जाने पर भी अंग्रेज़ी, गणित अभ्यर्थी और संघ के अति प्रिय चट्टे जी और बट्टे जी वहां बने रहे और मुझे सुनाकर कहा कि जो सही है, वो सही है। क्या सही है, वह तो तब पता चलता यदि आप भी महिला या “दिव्यांग” होते जिन्हें हर तैनाती में वरीयता मिलती है। कहां तक तो संगठन को इसकी मांग अधिकारियों से करनी चाहिए थी और कहां वह उल्टे इसे दिलाने वाले अधिकारी के ही विरोध में लड़ पड़ा।
घबराइए नहीं, मैं भी अपने संवैधानिक अधिकार के लिए यहां वहां फोन लगा सकती थी लेकिन क्या है न कि इतने टुच्चे कारणों के लिए मैं “भैया – भैया” चिल्लाना सही नहीं समझती। मुझे बड़े अच्छे ब्लॉक मिल रहे थे लेकिन मुझे इस पद का तिरस्कार करना ज़्यादा सही लगा जिसके लिए शिक्षक संघ और तथाकथित जान पहचान वाले शिक्षक साथियों को नग्न होना पड़ा। जो मुझे घुघली लेने के लिए मना रहे थे कि मैं भी उनकी तरह संघ का एक टूल बन जाऊं।
अंत में शिक्षिका सरिता त्रिपाठी ने लिखा है ‘सेम आन प्राथमिक शिक्षक संघ’ अब आ मत जाइयेगा कभी मुझसे चंदा मांगने।”
उक्त संदर्भ में संगठन के पदाधिकारियों तथा जिले के जिम्मेदार अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई परंतु बात नहीं हो सकी।