महराजगंज

मोदी की आंधी में उड़ गया इंडिया गठबंधन

पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों का नतीजा

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स) : पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम 2024 के लिए तैयार की गई इंडिया एलायंस के वजूद पर सवाल खड़ा करता है। एक्जिट पोल और राजनीतिक विश्लेषकों का जैसा चुनाव परिणाम का आकलन था, वैसा न आना विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस के भविष्य पर ब्रेक है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया एलायंस का मोदी को हराने का दावा भी पूरी तरह से कमजोर हुआ है। तीन दिसंबर का इंतजार खत्म हुआ और मोदी को हराने का ख्वाब देख रहे लोगों के ख्वाब फुर्र हो गए। चुनाव में परास्त कांग्रेस समीक्षा के बहाने कुछ दिन के लिए अंतर्ध्यान हो जाएगी। अब 2024 का लोकसभा चुनाव वह शायद बहुत जोशो खरोश से न लड़ पाए। जाहिर है विधान सभा चुनाव परिणाम पर भाजपा का जश्न के साथ राहुल गांधी और उनके परिवार की जमकर खिल्ली उड़ाया जाना उनकी राजनीति का हिस्सा है, वह ऐसा करेगी ही। लेकिन इस चुनाव परिणाम के लिए राहुल ही जिम्मेदार हैं, यह कहना गलत होगा। पहले मध्यप्रदेश के चुनाव की बात करते हैं। कमलनाथ पर ही कांग्रेस का भरोसा उचित नहीं था। आखिर 2018 में जीती बाजी अपने अहं और मगरुरता के कारण ही वे हारे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया गांधी परिवार के निकट थे, यह जानते हुए भी उन्होंने सिंधिया की अनदेखी की, उन्हें सम्मान के साथ अपने साथ नही रख पाए नतीजा, सरकार भाजपा के साथ चली गई। कांग्रेस ने कमलनाथ के इस नाकामी की समीक्षा नहीं करने की गलती की। बीच चुनाव में पार्टी लाइन से हटकर वे अलग राह चल रहे थे। ठीक है सीटों को लेकर सपा और कांग्रेस में कुछ विवाद था लेकिन कमलनाथ का अखिलेश पखिलेश कहकर उन्होंने एक बड़े वर्ग के वोटरों को नाराज कर दिया जिसका कुछ प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिल सकता था। इंडिया एलायंस ने जिन चुनिंदा टीवी एंकरों पर वैन लगा रखा था उसी में से एक नाविका को लेकर हेलीकॉप्टर में घुमाने के पीछे उनकी सोच क्या थी, यह भी समझ से परे था। कांग्रेस की चुनावी रणनीति से इतर कमलनाथ बागेश्वर बाबा के शरण में गए लेकिन वह भी इनका बेड़ा पार नहीं कर पाए। इस तरह देखें तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस की हार की वजह कांग्रेस से कहीं ज्यादा स्वयं कमलनाथ हैं। राजस्थान में रिवाज के कायम रहने की परंपरा से सभी वाकिफ हैं। कई इंटरव्यू में राहुल गांधी ने स्वयं कहा था कि राजस्थान में फाइट तगड़ी है। यानि वहां के चुनाव परिणाम को लेकर वे स्वयं भी बहुत आश्वस्त नहीं थे। उन्हें भी रिवाज का डर था लेकिन फिर भी ऐसा लगता था कि अशोक गहलोत रिवाज तोड़ कर राज कायम करने में कामयाब होंगे। ऐसा नहीं हो पाया तो इसके भी वैसे ही कारण है जैसे मध्यप्रदेश के हैं। कांग्रेस नेतृत्व ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट को एक साथ रखने की पूरी कोशिश की लेकिन गहलोत ने सचिन पायलट को कभी स्वीकार नहीं किया। सचिन के बगावत की घटना के पटाक्षेप के बाद भी पायलट की उपेक्षा जारी थी। याद होगा चुनाव के कुछ ही रोज पहले सचिन पायलट ने भाजपा नेत्री बसुंधरा राजे सिंधिया के कथित भ्रष्टाचार की जांच को लेकर गहलोत सरकार के खिलाफ धरना दिया था। सचिन पायलट और अशोक गहलोत में भारी अंतर्विरोध के बीच गहलोत सरकार तो चलती रही लेकिन राजस्थान में राजनीति का करवट बदलने में निर्णायक भूमिका निभाने वाले गुर्जर समाज ने गहलोत को सबक सिखाने के लिए कांग्रेस से दूरी बना ली। नतीजा राजस्थान में रिवाज की जीत हुई राज हार गया।

हां! छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार की हार चौंकाने वाली है। भूपेश बघेल की सरकार अपेक्षा कृत साफ सुथरी थी लेकिन भाजपा द्वारा उस पर भ्रष्टाचार के एक से एक आरोप लगाए गए जिसे जनता ने सच मान लिया।ओं मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में आदिवासियों का बड़ा वर्ग है जो सरकार बदलने में बड़ी भूमिका निभाता है। ये वोटर भाजपा के करीब कभी नहीं रहे जबकि इस बार वे भाजपा के साथ खुलकर दिखे। शायद भाजपा का द्रोपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनाया जाना उन्हें अच्छा लगा और वे भाजपा के साथ हो लिए। पांच में से चार राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आकर्षण और प्रभावशाली चुनाव प्रचार का तो कोई जोड़ रहा ही नहीं। भाजपा को विजय दिलाने में जहां मोदी की आकर्षक प्रचार शैली थी वहीं इंडिया एलायंस के सहयोगी सपा, आम आदमी पार्टी, आदि सहयोगियों का कांग्रेस के खिलाफ ही चुनाव लड़ जाना भी कांग्रेस की हार का कारण रहा। कांग्रेस के लिए तेलंगाना की जीत का संदेश बड़ा है। विपक्षी गठबंधन बचा रह गया तो दक्षिण की इस जीत का असर लोकसभा चुनाव में पड़ सकता है। वैसे लगता नहीं है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में इंडिया गठबंधन कुछ कर पाएगी, कांग्रेस को पुनः निराशा ही हाथ लगेगी।

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