पीजी कालेज आनन्द नगर में “सरल मानक संस्कृतम्” विषय पर आयोजित हुई एक दिवसीय कार्यशाला

देवों की वाणी है संस्कृत – डॉ बलराम भट्ट प्रबंधक लाल बहादुर शास्त्री स्मारक पीजी कालेज आनन्द नगर

संस्कृत भाषा की जटिलताओं को सरल रूप देकर ही पुरातन संस्कृति को जनसामान्य तक पहुंचाया जा सकता है – प्रोफेसर बनारसी त्रिपाठी
उमेश चन्द्र त्रिपाठी
महराजगंज: जनपद के फरेंदा तहसील क्षेत्र अंतर्गत लाल बहादुर शास्त्री स्मारक पीजी कालेज में आज ” सरल मानक संस्कृतम्” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा प्रायोजित है। दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का श्री गणेश कालेज के प्रबंधक डाॅ बलराम भट्ट ने किया। साथ ही कार्यक्रम में आए सभी विद्वानों को पुष्प मालाएं एवं अंगवस्त्र पहनाकर उनका स्वागत किया गया। इस कार्यशाला में लगभग 150 संस्कृत के शिक्षक और छात्राओं ने प्रतिभाग किया। कार्यशाला में प्रतिभागियों को सरल मानक संस्कृत का ज्ञान देने के लिए दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बनारसी त्रिपाठी,लाल बहादुर शास्त्री स्मारक पीजी कालेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य डाॅ चद्रशेखर मिश्र, सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु की सहायकाचार्य-संस्कृत डॉ आभा द्विवेदी, जवाहरलाल नेहरू स्मारक पीजी काॅलेज महराजगंज के प्राचार्य डॉक्टर अजय मिश्रा, दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के सहायकाचार्य-संस्कृत डाॅ सूर्य कान्त त्रिपाठी और डॉक्टर योगेन्द्र तिवारी ने अपने उद्बोधन से छात्र-छात्राओं का मार्ग दर्शन किया। यह कार्यशाला चार सत्रों में संचालित की गई जिसमे सभी प्रतिभागियों को सरल मानक संस्कृत के स्वरूप और क्रियान्वयन की जानकारी के साथ ही प्रौढ़ संस्कृत से सरल संस्कृत में वाक्य परिवर्तन का अभ्यास करवाया गया। इस कार्य शाला का लाभ सभी प्रतिभागियों को मिला और सभी प्रतिभागी आने वाले भविष्य में सिखाए गए ज्ञान का उपयोग करके महाविद्यालय का नाम रोशन करेंगे। आज की कार्यशाला से छात्र-छात्राओं में एक अलग ही प्रकार का उत्साह भी देखने को मिला।
कालेज के प्रबन्धक डाॅ बलराम भट्ट ने कहा कि संस्कृत एक प्राचीन समृद्ध भाषा है जिसे देवों की वाणी भी कहा जाता है। इस वाणी को सरल तरीको के द्वारा सभी के बीच पहुंचाने की आवश्यकता है तभी यह भाषा भारत वर्ष में लोकप्रिय हो पाएगी। साथ ही संस्कृत की जटिलताओं को दूर कर सरल स्वरूप दे कर विश्व कल्याण की आवश्यकता है।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि प्रो बनारसी त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत भाषा की जटिलताओं को सरल स्वरूप देकर ही पुरातन भारतीय संस्कृति को जनसामान्य तक पहुंचाया जा सकता है। डाॅ योगेन्द्र तिवारी ने किमर्थं सरलमानकसंस्कृतम् पर व्याख्यान दिया।
विशिष्ट वक्ता डाॅ आभा द्विवेदी ने सरलमानकसंस्कृतम् के स्वरुप पर चर्चा की । डाॅ अजय कुमार मिश्र ने प्रोढसंस्कृतस्य परिवर्तनस्य पर व्याख्यान दिया। डाॅ सूर्यकान्त त्रिपाठी ने सरलमानकसंस्कृतम् क्रियान्वयन पर विस्तृत रुप से बताया। विशिष्ट अतिथि डाॅ चन्द्रशेखर मिश्र जी ने छात्रों को सरलमानकसंस्कृतम् पर सरल प्रयोग के बारे में बताया। प्रो विजय कृष्ण ओझा ने सरल प्रयोगों के बारे में बताया।
कार्यशाला में आये हुए अन्य वक्ताओं में त्रिपुरारी मिश्र, पं जोखन शास्त्री, डाॅ अशोक वर्मा, डाॅ नन्दिता मिश्रा, डाॅ नेहा, प्रो किरन सिंह, डाॅ प्रवीण मिश्र,प्रीति यादव,डाॅ अखिलेश मिश्र, डाॅ सोनी कुमारी, डाॅ महीप पाण्डेय,डाॅ वैभव मणि त्रिपाठी एवं अन्य शिक्षक गण तथा छात्राओं ने प्रतिभाग किया।
कार्यशाला में आये हुए अतिथियों का स्वागत प्राचार्य डाॅ राम पाण्डेय ने स्मृति चिन्ह भेट करके किया। कार्यशाला के संयोजक संस्कृत विभाग के सहायकाचार्य उमेश चन्द्र तिवारी ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों को आभार ज्ञापित किया।
इस कार्यशाला में विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से आये हुए विद्वानों ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई एवं संस्कृत भाषा के सरल स्वरूप द्वारा शिक्षण करके व्यवहार में संस्कृत के प्रयोग को बढ़ाने हेतु वचनबद्धता प्रकट की।