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कांग्रेस आलाकमान के लिए भरोसेमंद नहीं रह गये कमलनाथ?

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

दिल्ली /लखनऊ /महाराजगंज: लोकसभा चुनाव में कमल नाथ की भूमिका को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। खासकर मध्यप्रदेश को लेकर सवाल है कि क्या कांग्रेस नेतृत्व कमलनाथ या उनके बेटे नुकुल नाथ को टिकट देने का साहस जुटा पाएगी? वह इसलिए कि पिछले एक पखवाड़े तक कमलनाथ और उनके सांसद बेटे को भाजपा में जाने की खबरें सुर्खियों में रही। कमलनाथ ने स्वयं इसका खंडन नहीं किया उल्टे अपने कुछ कारनामों से सपरिवार भाजपा से बढ़ रहे अपनी नजदीकियों जैसी खबरों की पुष्टि ही की।

मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस के गढ़ के रूप में देखा जाता है। इस क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ने आए कमलनाथ को इंदिरा गांधी ने अपना तीसरा बेटा कहकर लोगों से उन्हें संभालने की अपील की थी। कमलनाथ इस क्षेत्र से लगातार कई बार सांसद रहे। इस वक्त उनका बेटा नुकुल नाथ इस सीट से सांसद हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त तक कमलनाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। हैरत है कि कांग्रेस की सरकार और उनके मुख्यमंत्री रहते हुए मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई थी वह भी छिंदवाड़ा से उनके बेटे की। लोकसभा के इस चुनाव परिणाम से कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी इतनी दुखित हुईं कि उन्होंने साफ कहा कि यह चुनाव अकेले उनका भाई राहुल गांधी लड़ा। कोई अपने बेटे के लिए परेशान था तो कोई सगे संबंधियों के लिए। जाहिर है लोकसभा का वह चुनाव भारी अंतर्विरोध के बीच लड़ा गया था जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का कमलनाथ से तगड़ा मतभेद था। ग्वालियर से स्वयं वे भी हार गए थे। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में इस हद तक के मतभेद को कांग्रेस आलाकमान भी नहीं भांप पाया। एक वक्त आया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी अलग राह चुन ली। उन्होंने अपने 22 विधायकों को लेकर पहले कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से बेदखल किया उसके बाद भाजपा में दाखिल हो गए। कांग्रेस आलाकमान ने मध्यप्रदेश के सर्वाधिक भरोसेमंद नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भुला दिया लेकिन कमलनाथ पर भरोसा बनाए रखा।

कांग्रेस का भरोसे मंद यह शख्स 2023 के विधानसभा चुनाव में आलाकमान जब जीत की विसात बिछाता रहा तब यह शख्स कांग्रेस की हार सुनिश्चित करने की रणनीति में व्यस्त था। देश के सारे एक्जिट पोल के मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जीत के दावे के बाद यहां कांग्रेस की हार हतप्रभ करने वाली थी। वह तो बाद में पता चला कि कमलनाथ की वजहों से ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस की मिट्टी पलीत हुई। कमलनाथ का सपा से दो चार सीटों पर समझौता न करना और बीच चुनाव में अखिलेश के खिलाफ अपशब्द का इस्तेमाल महज इत्तेफाक नहीं था। बाद में खबर आई कि वे दोपहर के बाद प्रचार के लिए कभी निकले ही नहीं और तो और कमल नाथ इंडिया एलायंस के बड़े नेताओं की रैली को भी तैयार नहीं हुए। उल्टे उन्होंने इंडिया एलायंस के बहिष्कृत न्यूज चैनलों के 14 एंकरों में से एक रुबिका कुमार को हेलीकॉप्टर में घुमाकर एलायंस के नेताओं को चिढ़ाने का काम किया।

विधानसभा चुनाव में कमल नाथ के कई ऐसे कारनामे छन कर आए जिससे यह पता चलता है कि कमल नाथ की सपरिवार भाजपा में जाने की प्लानिंग पूर्व नियोजित थी। यह अलग बात है कि दिग्विजय सिंह और अन्य कांग्रेस के बड़े नेताओं के मान-मनौव्वल से वे रुक गए लेकिन रुके ही उनके कदम जब ठहर गए तब उन्होंने कहा कि वे दो मार्च को मध्यप्रदेश में राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल होंगे। ठीक है इसमें किसी के शामिल होने पर रोक नहीं है लेकिन कमल नाथ ऐसा करके क्या राहुल, सोनिया, प्रियंका या राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे का विश्वास हासिल कर पाएंगे? जहां तक जानकारी है कि कांग्रेस के ये जो चार बड़े चेहरे हैं, कम से कम इन्होंने तो कमलनाथ के भाजपा में जाने या न जाने पर कोई एतराज नहीं किया था। मुमकिन है कमलनाथ कांग्रेस में ठहरे भी रहें तो उनके बेटे नुकुल नाथ के भाजपा में जाने की खबरें अभी चल रही है। हो सकता है वे अपनी पत्नी को भी साथ लेते जायं । विधानसभा चुनाव के बाद कमल नाथ से प्रदेश अध्यक्ष की कमान वापस लेकर जीतू पटवारी को सौंपना अच्छा कदम था। उनकी इच्छा के विपरीत उन्हें राज्यसभा में न भेजना भी कांग्रेस का सही फैसला था। बताते हैं कि इसी दो वजहों से कमलनाथ नाराज हैं जिस वजह से वे भाजपा की चौखट तक जा पंहुचे। वे यह सब भूल गए कि इंदिरा गांधी ने उन्हें अपना तीसरा बेटा भी कहा था। कमलनाथ कांग्रेस जब-जब सरकार में थी केंद्र में मंत्री रहे। 2018 के चुनाव में वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। अपनी कुर्सी वे खुद ही न बचा पाए। किन्हीं वजहों से वे सपरिवार भाजपा में जाते जाते-जाते रह गए लेकिन कांग्रेस में अपनी स्थिति संदेहास्पद बना गए। माना जा रहा है कि दो मार्च को राहुल गांधी की न्याय यात्रा में कमलनाथ का शामिल होना उनकी भाजपा में जाने के कथित प्रयास का प्रायश्चित करना है। जो भी हो कमल नाथ ने कांग्रेस और आलाकमान की नजर में अपनी विश्वसनीयता संदिग्ध तो कर ही दी है। कांग्रेस के अंदरखाने से मिल रही जानकारी के अनुसार आसन्न लोकसभा चुनाव में इसका साफ असर दिखेगा जब कमलनाथ समर्थकों को टिकट से हाथ धोना पड़ेगा। मध्यप्रदेश के कुल 29 सीटों में से कमल नाथ के करीब एक दर्जन करीबी टिकट पाते रहे हैं। जाहिर है आसन्न लोकसभा चुनाव में कमल नाथ समर्थकों के टिकट पर ग्रहण की छाया तय है जिसमें नुकुल नाथ भी हो सकते हैं।

जानकारों का साफ कहना है कि संजय गांधी के जमाने से कांग्रेस से रिश्ता बनाए रखने वाले कमलनाथ ने एक झटके में अपनी स्थिति संदिग्ध बना ली। औरों की तरह यदि कमलनाथ भी कांग्रेस से चले जाते तो कांग्रेस पर बज्रपात नहीं फट पड़ता। आखिर जितने लोग कांग्रेस से जुदा हुए सबका कांग्रेस में एक सम्मानित स्थान था। करीब एक दर्जन तो ऐसे लोग कांग्रेस छोड़ गए जो अपने-अपने प्रदेशों में मुख्यमंत्री रहे हैं। इस सबके बावजूद कांग्रेस सत्ता में भले न हो, उसके वजूद को इनकार नहीं किया जा सकता।

ताजा सवाल लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कमलनाथ की भूमिका पर है। राजनीतिक विश्लेषक साफ कहते हैं कि जो शख्स मध्य प्रदेश में जनता के चाहने के बाद भी प्रदेश की सत्ता नहीं हासिल कर सका उस पर लोकसभा चुनाव में कुछ कर गुजरने का भरोसा करना हास्यास्पद ही है। मुमकिन है कांग्रेस भी कमल नाथ पर भरोसा न करे, और यदि कांग्रेस फिर भी कमलनाथ के भरोसे मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव की बिसात बिछाती है तो उसे चमत्कारिक चुनाव परिणाम की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए।

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