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गठबंधन एक,चेहरे अनेक,कांग्रेस की कैसे होगी नैया पार?

कांग्रेस बड़ा दिल दिखाने को तैयार है , लेकिन यूपी में क्या होगा, भाजपा से कैसे लड़ेगा गठबंधन यह एक बड़ा प्रश्न?

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

महराजगंज (हर्षोदय टाइम्स): इंडिया एलायंस की चौथी बैठक में करीब करीब यह बात सामने आ गई कि गठबंधन के सभी दल एक हैं। मजे की बात यह थी कि केजरीवाल और ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित करने की पेशकश की। खड़गे का विनम्रता पूर्वक जवाब भी इंडिया एलायंस का दिल लूटने वाला था, उन्होंने कहा कि पहले चुनाव जीतें फिर प्रधानमंत्री पर बात हो। उम्मीद थी कि तीन प्रदेशों की हार से कांग्रेस की हैसियत इंडिया एलायंस में डी ग्रेड की न हो जाए ! लेकिन समीक्षा में एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की हार की असलियत सामने आने पर गठबंधन के दलों ने कांग्रेस की अहमियत को स्वीकार कर लिया।

एमपी में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सपा मुखिया अखिलेश यादव भी पूरे उत्साह के साथ बैठक में शामिल हुए। दरअसल दिल्ली के अशोका होटल में हुई इंडिया एलायंस की बैठक पर भाजपा भी टकटकी लगाए हुए थी और कुछ मीडिया के साथी भी इस ताक में थे कि इस बैठक में एलांयस दलों के बीच सामंजस्य किस स्तर तक डगमगाया हुआ है। हालांकि इन्हें निराशा ही हुई।

इस बार इंडिया एलायंस की बैठक की कमान सोनिया गांधी के हाथ में थी। देखा गया कि वे किस आत्मीयता से लालू, शरद पवार, नितीश कुमार, अखिलेश यादव आदि से मिलीं। कहना न होगा कि सोनिया का यही संस्कार 2004 और 2009 में यूपीए गठबंधन की मजबूती और सफलतम दस साल चली सरकार की कामयाबी की वजह थी। 2024 के लिए तैयार इंडिया एलायंस में कभी-कभी कभी गड्ड-मड्डु जैसी स्थिति भी देखी गई। इधर भाजपा का आईटी सेल बहुत तेजी से सक्रिय हुआ। उसने दो मोर्चों पर देश को मिस्गाइड करने की कोशिश की। पहला तो यह कि इंडिया एलायंस में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा लेकिन जब उसे लगा कि इस गठबंधन की कमान सोनिया गांधी संभाल रही हैं, उसके बाद से सोशल मीडिया पर उल्टी दस्तशुरू हो गया। इस प्लेटफार्म पर नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया के बारे में कितनी गन्दी गालियां दी जा रही है, यह सभी लोग देख ही रहे होंगे।‌हाल ही राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति का टीएमसी सांसद की मिमिक्री के जरिए उपहास उड़ाये जाने की निंदा होनी चाहिए लेकिन यह मुद्दा एलायंस के खिलाफ भाजपा को एक हथकंडा मिल गया और वह इसे किसान और जाट के अपमान से जोड़ कर व्यापक प्रोपोगंडा पर उतारू है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे भी दलित हैं और उनके खिलाफ तो हत्या तक की बात कही गई, उन्होंने कभी नहीं कहा कि यह दलित का अपमान है। उपराष्ट्रपति के कथित अपमान को भाजपा चुनाव में भी जोर शोर से उठाना चाहेगी लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि संसद से विपक्षी सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा कर विपक्ष मुक्त संसद करना भी जनता को याद रहेगा। इंडिया एलायंस की चौथी बैठक की कामयाबी के बाद भी भाजपा को लगता है कि सीटों के बंटवारे को लेकर इंडिया एलायंस में जरूर पेंच फंसेगा। जबकि यह मामला भी करीब करीब सुलझा लिया गया है। बैठक में ही यह तय हो गया है कि जिन प्रदेशों में एलांयस के जो भी दल सरकार में है, सहयोगी दलों के लिए वे ही सीट शेयर तय करेंगे। ऐसे में जाहिर है कांग्रेस को पंजाब, यूपी, महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली जैसे प्रदेशों में मनमानी सीटों से वंचित तो होना पड़ेगा लेकिन उसकी सीटें सम्मान जनक ही होगी।

2024 के लोकसभा चुनाव में जाहिर है जातीय अंकगणित का खेल खूब चलेगा। भाजपा ने खुलकर बैकवर्ड कार्ड खेलना शुरू भी कर दिया है। लोकसभा की 80 सीटों वाले यूपी में इंडिया एलायंस के समक्ष निश्चित ही बैकवर्ड फार्मूला एक चुनौती है लेकिन जैसा कि इंडिया एलायंस के चुनावी बिसात की चर्चा है तो यदि ऐसा हो पाया तो निश्चित ही यह भाजपा के समक्ष मुश्किल पेश करेगी। अयोध्या, 22 जनवरी के बाद पूरे देश में चुनावी इस्तेमाल में होगा इसमें दो राय नहीं है और इंडिया एलायंस के पास इसका काट भी नहीं है लेकिन जैसा कि संभावना है, अकबरपुर से नीतीश कुमार के लड़ने से भाजपा के बैकवर्ड वोटों में विभाजन तय है। डुमरियागंज कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है, यहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका की तादाद में हैं। इस बार यह वोटर कांग्रेस से किसी दमदार हिंदू के उम्मीदवार की बात कर रहे हैं।

संभावना है कि कांग्रेस यहां से फरेंदा क्षेत्र के अपने युवा विधायक वीरेंद्र चौधरी को चुनाव लड़ाने पर विचार करे। इसी तरह नगीना सुरक्षित सीट से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे यदि चुनाव लड़ते हैं तो यह यूपी के दलितों के लिए बड़ा संदेश होगा। रायबरेली से प्रियंका गांधी और अमेठी से राहुल गांधी के फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी है। यूपी में कांग्रेस पांच मुस्लिम उम्मीदवार लड़ाना चाहेगी लेकिन ये सीटें कहां-कहां की होंगी, यह तय नहीं है। इस तरह देखें तो इंडिया एलायंस भी अपना काम कर रहा है और इसको लीड करने वाली कांग्रेस भी बड़ा दिल दिखाने को तैयार है।

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